स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद का जन्मदिन
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में देश के लिए समर्पित क्रांतिकारियों में अगर हमें आदर्श क्रांतिकारियों चुनने के लिए कई नाम आएंगे. रामप्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह के साथ इनमें चंद्रशेखर आजाद का नाम भी आएगा. 23 जुलाई को आजाद कि जन्मतिथि है. आजादी के प्रति जैसा जज्बा चंद्रशेखर आजाद का था उसके भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू कायल थे. वे अपने सभी क्रांतिकारी साथियों में बहुत ही प्रिय साथी के रूप में जाने जाते थे. वे एक बेहतरीन निशानेबाज और कुशल रणनीतिकार भी थे. उन्हें खुद को वचन दिया था कि वे कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे जिसे उन्होंने मरते दम तक निभाया. चंद्रशेखर आजाद तिवारी का जन्म 23 जुलाई 1906 को आलिराजपुर के भाभरा गांव, जो आज के मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में हैं, में हुआ था. उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी था. बचपन में ही चंद्रशेखकर का जीवन भीलों के बीच बीता जहां उन्होंने तीर कमान से निशाना लगाना सीख लिया. बालक चंद्रशेखर पर उनकी मां का बहुत प्रभाव था. वे चाहती थीं कि चंद्रशेखर संस्कृत में गहन अध्ययन करें और इसके लिए आजाद को काशी विद्यापीठ बनारस भी भेजा गया लेकिन आजाद के मन में बचपन से ही देशभक्ति की भावना भरी हुई थी. 15 साल की उम्र में ही असहयोग आंदोलन में गिरफ्तार कर लिया गया. अदालत में जज से हुआ उनका संवाद बहुत मशहूर हुआ और यहीं से उनके नाम के आगे आजाद जुड़ गया. बनारस में उनकी मुलाकात क्रांतिकारियों से हुई. 1922 में जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन बंद करने का ऐलान किया देश भर के निराश युवाओं में आजाद भी थी. क्रांतिकारियों के संपर्क में वे आ चुके थे. ऐसे में उनकी मुलाकात राम प्रसाद बिस्मिल से हुई. और आजाद उनके हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ से जुड़ गए. शुरुआत में संघ ने असंगंठन की जरूरतों के लिए गरीबों पर जुल्म करने वाले अमीर लोगों को लूटने के कामशुरू किया लेकिन जल्द ही इस काम से उन्होंने तौबा कर ली. आजाद उसूलों के पक्के थे, लोगों से पैसा लूटते समय एक गांव में एक महिला ने आजाद से पिस्तौल छीन ली लेकिन आजाद ने उस महिला पर हाथ नहीं उठाया. ये बिस्मिल थे जिन्होंने उस महिला से पिस्तौल छीनी और आजाद को भी छुड़ाया. इसके बाद दल ने अपनी नीति बदली और नई नीतियों का पर्चे बांट कर प्रचार कर लोगों को उससे अवलगत भी कराया जिसमें सशस्त्र क्रांति द्वारा आजादी की बात की गई थी. आजाद की लोकप्रियता का खुलासा उनकी मौत के बाद हुआ जब उनके अंतिम संस्कार में पुरुषोत्मदास टंडन और कमला नेहरू भी शामिल हुए थे. भारी संख्या में स्थानीय लोगों ने भी उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए. जहां बाकी क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने अपने प्रतिष्ठा के लिए पकड़ा था, वहीं आजाद का उनमें खौफ देखा जाता था. अंग्रेजों ने वह पेड़ तक जड़ से उखड़वा दिया था जिसकी आड़ में आखिरी बार वे अंग्रेजों से लड़े थे. आज के दौर में शहीदों की मज़ार पर साल में दो बार मेले तो जरूर लगते हैं, उनकी तस्वीरों के आगे फूल और मालाएं चढ़ाई तो जाती हैं, लेकिन मात्र उनकी बहादुरी को पूजने के लिए। वो शहीद क्या सोचते थे, किस तरह के भारत का सपना ले कर लड़े और मृत्यु को खुशी-खुशी गले लगाया उसकी चर्चा न के बराबर ही है देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के आंदोलन में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का अतुलनीय योगदान रहा है. उनके जैसे वीरों के बलिदान का ही नतीजा है कि आज हम आजाद देश में रह रहे हैं. चंद्रशेखर आजाद पार्क में आज भी उनके शहादत स्थल पर लोग जुटते हैं और उन्हें आधुनिक भारत का भगवान मानते हुए नमन करते हैं. युवा आजाद की मूर्ति के आगे सर झुकाकर प्रणाम करते हुए उन्हें नमन करते हैं, तो बहुत से उनकी मूर्ति के सामने ही खड़े होकर उन्हें सैल्यूट करके श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. इलाहाबाद राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी हुई उनकी प्रिय पिस्टल बमतुल बुखारा को देखने के लिए भी बड़ी संख्या में लोग जाते हैं. आजाद को अपनी पिस्टल से बहुत प्यार था और उन्होंने उसका नाम बमतुल बुखारा रखा था. उनके शहीद होने के बाद अंग्रेज अफसर उस पिस्टल को इंग्लैंड लेते गए थे, जिसे काफी प्रयास के बाद वापस लाया गया है. जो आज भी संग्रहालय में सुरक्षित रखी हुई है. आजाद और उनके जैसे देश के दूसरे शहीदों के बलिदान का ही नतीजा है कि आज हम अंग्रेजों से मुक्त आजाद भारत में रह रहे हैं. देश की आजादी का मुख्य नायक वो चंद्रशेखर को ही मानते हैं. उनके क्रांतिकारी विचारों को आजादी की लड़ाई का आधार बताते हैं जन्मदिन पर शत-शत नमन करते हैं.
लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं