फल–सब्जी स्टोर करने के काम नहीं आएगा कोल्ड स्टोरेज
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तर प्रदेश के दौर में बने शीतगृह (कोल्ड स्टोरेज) को राज्य गठन के 22 साल बाद भी इस लायक नहीं बनाया जा सका है कि इसका उपयोग फल और सब्जियों को ताजा बनाए रखने में किया जा सके। आगे भी इसका उपयोग कृषि उत्पाद रखने में होने की कोई संभावना नहीं है। वहीं शासन के निर्देश के बाद इस अधूरे शीतगृह को दस साल के लिए पट्टे (लीज) पर दिया जाएगा। 1992 में 77.77 लाख रुपये से शीतगृह भवन का निर्माण हुआ था। मकसद था चंपावत सहित दूसरे पहाड़ी जिले के आलू, सेब, नाशपाती और सिटरस फलों का भंडारण करना ताकि ऑफ सीजन में इसकी बिक्री से किसानों को अच्छी कीमत मिल सके लेकिन ऐसा नहीं हो सका। इस शीतगृह का उपयोग फल-सब्जी रखने को छोड़ कई अन्य तरीकों से हुआ है। सितंबर 1997 में जिला बनने के तुरंत बाद कुछ समय तक इसका उपयोग पुलिस लाइन के रूप में हुआ। इसके बाद पूर्ति विभाग के खाद्य गोदाम के रूप में, वर्ष 2009 से 2015 तक अल्मोड़ा की विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने भवन का इस्तेमाल बीज और खाद्य प्रसंस्करण के लिए किया। इसके बाद 2017-18 में खटीमा के एक व्यक्ति को पट्टे दिया गया था।लंबे समय से जरूरत के मुताबिक बारिश न होने से जिले के कई स्थानों पर आलू की फसल सूखने के कगार पर पहुंच गई है। आलू की पत्तियां पीली पड़ने के साथ उनकी ग्रोथ रुक गई है। सबसे अधिक नुकसान पाटी के आलू उत्पादक काश्तकारों को झेलना पड़ा पाटी क्षेत्र के तपनीपाल ग्राम सभा सहित खेतीखान, मानर, बाजगाव, पोखरी, धूनाघाट आदि स्थानें में पिछले लगभग सात माह से बारिश नहीं हुई है। खेतों की नमी सूखने के बाद मजबूरी से काश्तकारों ने आलू बीज लगाया। जैसे तैसे बीज जम भी गया लेकिन अब ग्रोथ पूरी तरह प्रभावित हो गई है। पत्तियां पीली पड़ने के साथ झुलसने लगी हैं। तपनीपाल के किसान ने बताया कि उन्होंने 1700 रुपये का आलू बीज का कट्टा खरीद कर लगाया था। जंगली जानवरों से आलू की सुरक्षा के लिए वे खेतों के पास ही झोपड़ी बनाकर रहा रहे हैं, लेकिन बारिश न होने से सारी मेहनत बेकार हो गई है। बताया कि पौधे सूख गए हैं। कलाखर्क गांव के युवा किसान का कहना है कि आलू का बीज उधार लेकर लगाया लेकिन बारिश न होने की वजह से आलू के पौधे ग्रोथ नहीं कर पा रहे हैं। फसल चौपट होने पर उधारी देना भी मुश्किल हो जाएगा। काश्तकार ने बताया कि जंगली जानवरों के भय से तथा मौसम के मिजाज को देखते हुए उन्होंने इस बार कम आलू बीज लगाया, लेकिन वह भी बर्बाद होने की कगार पर आ गया है। बारिश से फसलों को कोई राहत नहीं मिल पाई है। कभी पाटी क्षेत्र के खेतीखान, बांजगांव, पोखरी, धूनाघाट आलू उत्पादन के लिए जिले में प्रसिद्ध थे, लेकिन जंगली जानवरों के आतंक से अब लोग कम मात्रा में आलू लगाते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष जुकरिया ने बताया कि आज से चार साल पहले तक यहां का आलू जिले की खपत पूरी करने के साथ बाहरी राज्यों में भी जाता था, लेकिन अब आलू उत्पादन सीमित हो गया है। उन्होंने बताया कि सरकार और जिम्मेदार विभाग काश्तकारों की समस्या को अनदेखा करते आए हैं।पहाड़ के लोगों ने जिस मूल मंशा और संघर्षों के साथ उत्तराखंड राज्य का निर्माण किया था, वह राज्य गठन के 22 साल भी अधूरी ही है। 22 साल की राजनीति में राजनेताओं ने पहाड़ की तरक्की के तमाम दावे किए लेकिन सच्चाई यही है कि आज उत्तराखंड घोटालों का प्रदेश बनकर रह गया है।फिर चाहे वो भर्ती परीक्षाएं हों या फिर विकास कार्य, हर तरफ लूट मची है। यही वजह है कि इन दिनों राज्यभर में युवा सड़कों पर हैं और राज्य निर्माण में अहम योगदान देने वाले आंदोलनकारी यही सवाल पूछ रहे हैं कि क्या इसी दिन के लिए पहाड़ के लोगों ने शहादत दी थी। इसके उत्तराखंड और यहां के लोगों की छवि देश-दुनिया में धूमिल हुई है। राज्य के गरीब किसान अभी भी अपनी फसल के मूल्य पाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जो शायद ही उनको कभी मिल पायेगा।
लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।