जानलेवा बनी बैगनी नसें, स्वस्थ उत्तराखंड अभियान में जागरूकता बहुत जरूरी ।

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स्लग :- जानलेवा बनी बैगनी नसें, स्वस्थ उत्तराखंड अभियान में जागरूकता बहुत जरूरी ।
टॉप :- देहरादून
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एंकर :- आजकल की भागती दौड़ भाग की जिन्दगी में अपने स्वास्थ्य की जांच के लिए बहुत कम लोग समय निकाल पाते हैं। साथ ही बहुत कम लोगों गंभीर बीमारियों को लेकर जागरूक हैं। आम जनमानस को बीमारी के प्रति जागरूक करने के लिए ‘विचार एक नई सोच’ सामाजिक संगठन ने पेरिफेरल वास्कुलर जैसी गंभीर बीमारी को लेकर देहरादून के एक निजी होटल में एक दिवसीय स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया। राज्य के एकमात्र वरिष्ठ वास्कुलर सर्जन डा॰ प्रवीण जिन्दल इस अभियान का हिस्सा बने। देहरादून से शुरू हुआ यह अभियान पूरे राज्य में चलाया जायेगा। इस बीमारी के प्रति लोगों की जागरूकता के लिए उत्तराखंड के सीमांत इलाकों व दुर्गम क्षेत्रों में निशुल्क हैल्थ कैंप भी लगाये जायेंगे। विचार एक नई सोच के स्वस्थ्य उत्तराखंड अभियान के हिस्सा बने डा॰ प्रवीण जिन्दल ने पत्रकारो को बताया कि यह बीमारी मौजूदा कार्य की संस्कृति में हुए बदलाव के कारण बढ रही है। डा. प्रवीण जिंदल ने देहरादून व आसपास के स्कूलों में अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है। इसके अलावा उन्होंने मधुमेह, धूमपान व शराब का सेवन व अनियमित जीवनशैली भी नसों से जुड़ी बीमारियों को भी प्रमुख कारण बताया है। उन्होंने कहा यह बीमारी महिलाओं, पत्रकारो, शिक्षकों और सैनिको में सबसे ज्यादा हो रही है। इसीलिए कि वे दिनभर में अधिकांश खड़े ही रहते है। अधिक समय खड़े रहने से ही यह बीमारी बढ जाती है। इसके अलावा खान पान और शाररिक व्यायाम के आभाव में भी नसों से संबधित बीमारियां फैलती है।

बाइटर – डा. प्रवीण जिंदल, वरिष्ठ वैस्कुलर सर्जन।

डा॰ प्रवीण जिन्दल के अनुसार ऐसी घातक बीमारी से बचने के आज कई प्रकार के उपचार उपलब्ध है। अच्छा हो कि बीमारी से पहले हमें सुरक्षा के बचाव खुद से करना चाहिए। डा. प्रवीण जिंदल का कहना है कि स्वस्थ्य जीवनशैली, धूमपान व शराब का सेवन नहीं करना, संतुलित आहार, शुगर व कोलेस्ट्राल पर नियंत्रण करने से भी नसों से संबंधित बीमारियों से बचा जा सकता है। खड़े रहने के कार्याे में तब्दीली करनी होगी साथ ही शाररिक व्यायाम को महत्व देना होगा। दौड़भाग की जिन्दगी के साथ सबसे पहले खुद के स्वास्थ्य का ख्याल रखना आज की बहुत जरूरी आवश्श्यकता हो गई है। डॉ जिदंल ने कहा कि इसका संबध खून से होता है और बाद में यह वास्कुलर, वेरीकोस वेंस, हाथ पैरो के जोड़ो में दर्द, पैरो में सूजन और डीप वेन थ्रोम्बोसिस जैसी घातक बीमारी का रूप ले लेती है। डा. जिंदल का कहना है कि अन्य राज्यों की तुलना में नसों से संबंधित बीमारी से ग्रसित मरीजों की संख्या उत्तराखंड में अधिक है। क्योंकि यहां पर लोग धूमपान व शराब का सेवन अधिक करते हैं। कम दूरी तय करने में ही थकावट महसूस होना, पैरों व टांगों में सूजन, पैर के रंग का परिवर्तन होना, सुन्नपन, पैर की उंगलियों का काला पड़ना, पेट में तेज दर्द होना, लकवा जैसे लक्षण दिखने पर तुरंत वैस्कुलर चिकित्सक से सलाह लेकर इलाज करना चाहिए।

बाइटर – डा. प्रवीण जिंदल, वरिष्ठ वैस्कुलर सर्जन।