बंटवारे के लिए सर्वे सिंचाई विभाग का परिसंपत्तियों के चार जलाशयों पर बना रहेगा यूपी का कब्जा

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बंटवारे के लिए सर्वे सिंचाई विभाग का परिसंपत्तियों के चार जलाशयों पर बना रहेगा यूपी का कब्जा

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड राज्य बने 21 साल हो गए हैं. सिंचाई विभाग की दो हजार से अधिक परिसंपत्तियों के लिए सर्वे का कार्य पूरा हो गया है। उत्तर प्रदेश उत्तराखंड के सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने अपनीअपनी रिपोर्ट तैयार कर ली है। दस्तखत हो जाने के बाद परिसंपत्तियों का बंटवारा हो जाएगा। फिलहाल जिले में जो चार जलाशय हैं इनके पानी पर उप्र का ही कब्जा रहेगा।सिंचाई विभाग के अधीक्षण अभियंता ने बताया कि उत्तर प्रदेश के साथ इन संपत्तियों के बंटवारे के लिए बीते दिनों मुख्यमंत्री स्तर से प्रयास किए गए थे। जिसके बाद सर्वे कराया गया है। सितारगंज, खटीमा, किच्छा में सिंचाई विभाग के गेस्ट हाउस, कालोनियों का बंटवारा किया जाना है। इसका सर्वे दो माह से किया जा रहा था। वहीं करीब 29.5 हेक्टेयर जमीन का बंटवारा किए जाने के लिए सर्वे किया गया है।खटीमा सितारगंज क्षेत्र के नानकसागर, शारदा सागर, गूलरभोज के धौरा जलाशय बैगुल जलाशय के पानी पर उत्तर प्रदेश का ही कब्जा रहेगा। इस पर आगामी बैठक में कोई चर्चा नहीं की जाएगी। अधीक्षण अभियंता का कहना था कि जिन बिंदुओं पर सर्वे किया गया है उसकी सूची बना ली गई है। दोनों प्रदेशों के अधिकारियों के बीच जब बैठक होगी तब यह सूची रखी जाएगी।इसके अनुसार ही बंटवारे में किच्छा में पांच आवासीय कालोनी, एक गैर आवासीय कालोनी मिलनी है। सर्वे के अनुसार कुल 52 आवासीय कालोनी व आठ गैर आवासीय कालोनी उत्तर प्रदेश से मिलनी हैं। वहीं आठ गैर आवासीय भवन, 20 नहरें उत्तराखंड को पहले ही मिल चुकी हैं। 29.5 हेक्टेयर जमीन को लेकर विवाद था। इस पर आने वाले दिनों में सूची के अनुसार चर्चा की जाएगी। उम्मीद है कि यह उत्तराखंड को मिलेगी। खटीमा की लाल कालोनी, कैनाल कालोनी, लोहियाहेड कालोनी उप्र से मिलनी है।राज्य पुनर्गठन आयोग के तहत उत्तराखंड और यूपी के बीच सिंचाई विभाग की भूमि और भवन, कुंभ मेला भूमि के हस्तांतरण के मसलों पर लंबे समय से विवाद रहाजब भी उत्तराखंड का चुनाव नजदीक होता है, सरकार की तरफ से यह दावा जरूर किया जाता है कि यूपी के साथ उसकी परिसंपत्तियों के बंटवारे का विवाद सुलझा लिया गया है। वर्ष 2000 में यूपी से अलग होने के बाद दोनों राज्यों के बीच संपत्तियों का बंटवारा होना था। वैसे यह बंटवारा उतना मुश्किल नहीं था, जितना बन गया। बंटवारा आसान इसलिए था कि यूपी पुनर्गठन अधिनियम में परिसंपत्तियों और लेन-देन के बंटवारे का स्वरूप तय है। बंटवारे के लिए ‘जहां है और जैसा है’ का सिद्धांत लागू है। यह ठीक से लागू इसलिए नहीं हो सका कि इसके लिए जिस राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत थी, वह अभी तक नहीं देखी गई। पिछले दिनों लखनऊ में उत्तराखंड और यूपी के मुख्यमंत्रियों की मुलाकात के बाद 21 साल पुराने संपत्तियों के विवाद को सुलझाने का एक बार फिर दावा किया गया है। बीजेपी उत्तराखंड में इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत कर रही है लेकिन सरकार के दावे के साथ जितने किंतु-परंतु लगे हुए हैं, उनके मद्देनजर यह यकीन करना मुश्किल है कि विवाद सचमुच सुलझा लिया गया है।उत्तराखंड में महीने भर में दो मुख्यमंत्री बदलने की वजह से बीजेपी दबाव में है। कांग्रेस इसे एक बड़ा मुद्दा बनाए हुए है। जुलाई महीने में मुख्यमंत्री बने चुनाव मैदान में जाने से पहले अपने खाते में बड़ी उपलब्धि दिखाना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि 21 साल पुराने विवाद का समाधान कराने का श्रेय अगर उनके हिस्से आ जाता है तो यह न केवल वोट बटोरने में सहायक होगा बल्कि उनकी प्रशासनिक सूझबूझ का भी सिक्का जमा देगा। बीजेपी और सरकार दोनों ही इसे उपलब्धि बताते हुए इसके व्यापक प्रचार में जुट गए हैं। उधर विपक्ष यह साबित करना चाहता है कि बीजेपी के पास जनता के बीच ले जाने के लिए कोई मुद्दा नहीं है तो वह एक ऐसा मुद्दा गढ़ रही है, जो हकीकत से काफी दूर है। विपक्ष यूपी-उत्तराखंड के बीच विवाद सुलझाने के लिए हुए समझौते पर श्वेत पत्र लाने की मांग कर रहा है। उसका आरोप है कि उत्तराखंड ने यूपी के आगे समर्पण कर दिया। विपक्षी नेताओं को लगता है कि उत्तराखंड राज्य का गठन स्थानीय लोगों की भावनाओं से जुड़ा है। यूपी के आगे समर्पण की बात उन्हें स्वीकार नहीं होगी। उसका फायदा वे लोग उठा सकते हैं।वर्ष 2000 में यूपी से अलग होने के बाद दोनों राज्यों के बीच संपत्तियों का बंटवारा होना था। वैसे यह बंटवारा उतना मुश्किल नहीं था, जितना बन गया। बंटवारा आसान इसलिए था कि यूपी पुनर्गठन अधिनियम में परिसंपत्तियों और लेन-देन के बंटवारे का स्वरूप तय है। बंटवारे के लिए ‘जहां है और जैसा है’ का सिद्धांत लागू है। यह ठीक से लागू इसलिए नहीं हो सका कि इसके लिए जिस राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत थी, वह अभी तक नहीं देखी गई है.