औषधीय गुणों से लबरेज बुरांश उत्तराखंड की हसींवादियों पाया जाता है
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
हिमालयी राज्यों में 12 माह प्रकृति की अनुपम छटा बिखरी रहती है। पर बसंत ऋतु की बात ही कुछ और है, इस ऋतु के आने पर पहाड़ो की खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है। माघ, फागुन, चैत्र, बैशाख के महीनों में यहां मौसमी फलों, फूलों आदि की प्रचूरता बढ़ जाती है। इन्हीं महीनों में खिलने वाला एक मौसमी फूल “बुरांश” है। मार्च और अप्रैल के महीनों में पहाड़ इसके फूलों के रंग से सराबोर हो जाते हैं।बुरांश उत्तराखंड का राजकीय वृक्ष है, जबकि यह हिमाचल और नागालैंड का राजकीय पुष्प भी है। एनवायर्नमेंटल इनफार्मेशन सिस्टम (ईएनवीआईएस) रिसोर्स पार्टनर ऑन बायोडायवर्सिटी के मुताबिक बुरांश का वानस्पतिक नाम रोडोडेंड्रोन अर्बोरियम एसएम है। बुरांश को अंग्रेज़ी में रोडोडेंड्रोन और संस्कृत में कुर्वाक के नाम से भी जाना जाता है। ‘रोडोडेंड्रोन‘ दो ग्रीक शब्दों से लिया गया है, ‘रोड‘ का अर्थ है ‘गुलाबी लाल‘ और ‘डेंड्रोन‘ का अर्थ है ‘पेड़‘ में खिलने वाले गुलाबी लाल फूलों से है। मार्च–अप्रैल के महीनों में बुरांश के फूलने का समय है। उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में बुरांश की आर. आर्पोरियम नामक प्रजाति पाई जाती है। यह प्रजाति कुमाऊं और गढ़वाल के हिमालयी क्षेत्र में बहुत अधिक पाई जाती है। बुरांश एक सदाबहार पेड़ है जो समुद्र तल से 1500-3600 मीटर की ऊंचाई पर उगता है, यह 20 मीटर तक ऊंचा होता है, जिसमें खुरदरी और गुलाबी भूरी छाल होती है। पत्तियां शाखाओं के सिरे की ओर भरी हुई, तिरछी-लांसोलेट और सिरों पर संकुचित, 7.5 से 15 × 2.5 – 5 सेमी, ऊपर चमकदार, नीचे सफेद या जंग के सामान भूरे रंग के होते हैं। फूल कई हिस्सों में, बड़े, गोलाकार, गहरे लाल या गुलाबी रंग के होते हैं। बुरांश के फूलों से बना शरबत हृदय रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इन पंखुड़ियों का उपयोग सर्दी, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द और बुखार को दूर करने के लिए किया जाता है। स्थानीय लोग इसका इस्तेमाल स्क्वैश और जैम बनाने में करते हैं। साथ ही इसकी चटनी को आज भी ग्रामीण इलाकों में पसंद किया जाता है। बुरांश का फूल आपके खून में हीमोग्लोबिन बढ़ाने में मदद करता है और एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी को दूर करता है. इसके अलावा हड्डियों को मजबूत करने, शरीर और त्वचा की जलन को शांत करने तथा डायबिटीज़ रोगियों के लिए भी मददगार है. कत्यूर घाटी के कौसानी में जन्में प्रख्यात छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत ने बुरांश पुष्प पर कुमाउनी भाषा में एकमात्र कविता की रचना की थी। उनकी इस कृति ने भी साहित्यकारों के बीच बुरांश की लोकप्रियता को बढ़ा दिया। आज भी साहित्यकार व रचनाकार पहाड़ के बारे में लिखते वक्त बुरांश का जिक्र जरूर करते हैं। कवि पंत ने लिखा था – सार जंगल में त्वे जस क्वे न्हां रे बुरांश, खिलन क्ये छै जंगल जस जलि जा, सल्ल छ, दयार छ, पई छ, अयार छ, सबन में पुंगनक भार छ, पर त्वी में दिलै की आग छ, त्वी में जवानिक फाग छ। उत्तराखंड की पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाला बुरांश का फूल सुंदरता के साथ-साथ सेहत का खजाना भी है। गर्मियों के मौसम में खिलने वाले इस फूल की कई प्रजातियां होती हैं। दुनिया में खिलने वाले बुरांश की सबसे अधिक प्रजातियां हिमालयी क्षेत्रों में मिलती हैं। हिमालयी क्षेत्रों में इसे बुरुंज या बुरांश नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि बुरांश हिमालयी मूल का ही वृक्ष है। इसमें सुर्ख लाल रंग के फूल खिला करते हैं हालांकि वाशिंगटन ने बुरूंज की जिस प्रजाति को अपना राज्य पुष्प बनाया है वह हल्के गुलाबी से चटक गुलाबी के होते हैं 1892 में महिलाओं को वोट मिलने के अधिकार से पहले वाशिंगटन की महिलाओं ने अपने राज्य पुष्प के चयन के लिए वोट डाला था। 1893 में होने वाले शिकागो विश्व मेले में लगने वाली फूलों की प्रदर्शनी में वाशिंगटन की महिलाओं ने बुरांश को चुना। विश्व मेले में लगने वाली फूलों की प्रदर्शनी के लिए वाशिगंटन की ओर से बतौर राज्य पुष्प किसी एक फूल को चुना जाना था। इसके लिये छह फूलों पर विचार किया गया लेकिन अंतिम दो फूलों में क्लोवर और कोस्ट रोडोडेनड्रॉन को जगह मिली। वाशिंगटन की महिलाओं के लिए राज्य भर में जगह-जगह वोटिंग बूथ बनाए गए थे। अंत में जब मतपत्रों की गिनती की गई और बुरुंज की एक प्रजाति जिसे स्थानीय तौर पर कहा जाता है, को वाशिगंटन का राज्य पुष्प चुना गया। साल 1959 में वाशिंगटन की विधानसभा ने आधिकारिक तौर पर बुरुंज (रोडोडेंड्रोन मैक्रोफिलम) को अपना राज्य पुष्प बनाया।नेपाल, तिब्बत, भूटान, श्रीलंका, म्यांमार, पकिस्तान, अफगानिस्तान, थाईलैंड और यूरोप में भी बुरांश पाया जाता है। यह नेपाल का राष्ट्रीय फूल भी है। बुरांश एरिकेसिई परिवार की 300 प्रजातियों में से है। एरिकेसिई परिवार की प्रजातियां उत्तरी गोलार्ध की सभी ठंडी जगहों में पाई जाती हैं। लेकिन बड़े अफ़सोस की बात है कि इतनी बड़ी मात्रा में खिलने वाले इन फूलों पर अभी तक ना तो कोई वैज्ञानिक अनुसंधान हुआ है।और ना ही तो इनके चिकित्सीय उपयोग पर रिसर्च और ना ही इसका ढंग से कोई व्यावसायिक उपयोग।इसका व्यावसायिक उपयोग ना होने के कारण या लोगों को इसके बारे में अत्यधिक जानकारी ना होने के कारण पहाड़ों का यह सुंदर सा फूल हर साल बस यूँ ही बेकार हो जाता है।
यह फूल व वृक्ष दोनों ही सरकार की उपेक्षा झेल रहे है। सरकार अगर इस तरफ ध्यान दें और कोई ठोस योजना बनाकर इसे लघु उद्योग के रूप में बढ़ावा दे।तो न सिर्फ लोगों को रोजगार मिलेगा,बल्कि प्रदेश का राजस्व भी बढ़ेगा।साथ ही साथ लोगों को पहाड़ों पर उगने वाले इस खूबसूरत फूल के औषधि गुण भी मिलेंगे।जो लोगों को स्वस्थ रहने में मदद देंगे। उत्तराखंड के पहाड़ में अत्यधिक मात्रा में पाए जाने वाले बुरांश वृक्ष और इसके फूल दोनों ही महत्वपूर्ण हैं।जहां इसके फूल औषधि रूप में काम आते हैं।वहीं इसकी पत्तियां जैविक खाद बनाने के लिए तथा लकड़ी ईधन,फर्नीचर व कृषि उपकरण बनाने के लिए प्रयोग में लाई जाती है। स्थानीय लोगों द्वारा इसके फूलों से शीतल पेय बनाया जाता है।जो गर्मियों में बहुत ही लाभदायक होता है।यह शरीर को ताजगी से भर देता है।साथ ही इसके फूलों से जैम, स्क्वास, जेली तथा काढ़ा बनाया जाता है