क्या था नमक सत्याग्रह: जब नमक ने बदल दी देश की तकदीर

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क्या था नमक सत्याग्रह: जब नमक ने बदल दी देश की तकदीर

 

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

दांडी मार्च जो गांधीजी और उनके स्वयं सेवकों द्वारा 12 मार्च, 1930 ई. को शुरू किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य था अंग्रेजों के ‘नमक कानून को तोड़ना’। गांधीजी ने साबरमती में अपने आश्रम से समुद्र की ओर चलना शुरू किया। आंदोलन की शुरुआत में 78 सत्याग्रहियों के साथ दांडी कूच के लिए निकले बापू के साथ दांडी पहुंचते-पहुंचते पूरा आवाम जुट गया था।लगभग 25 दिन बाद 6 अप्रैल, 1930 ई. को दांडी पहुंचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक कानून तोड़ा। महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा के दौरान सूरत, डिंडौरी, वांज, धमन के बाद नवसारी को यात्रा के आखिरी दिनों में अपना पड़ाव बनाया था। यहां से कराडी और दांडी की यात्रा पूरी की थी। नवसारी से दांडी का फासला लभभग 13 मील का है।यह वह दौर था जब ब्रितानिया हुकूमत का चाय, कपड़ा और यहां तक कि नमक जैसी चीजों पर सरकार का एकाधिकार था। चौरीचौरा कांड की हिंसा के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था जिसके कारण देश व्यापक निराशा छा गयी थी। 1927 में सायमन कमीशन के विरोध के बाद यह तन्द्रा टूटी। 1929 में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य के प्रस्ताव का समर्थन किया और 26 जनवरी 1930 को यह प्रस्ताव कांग्रेस ने पास भी कर दिया।  लेकिन 12 मार्च को गांधी जी अपने मुट्ठी भर  सहयोगियों के साथ साबरमती आश्रम अहमदाबाद से सागर तट पर स्थित एक छोटे से गांव दांडी के लिये प्रस्थान करते हैं तो किसी को भी यह आशा नहीं थी कि, इतिहास एक करवट बदलने वाला है । अंग्रेज़ी हुक़ूमत ने भी प्रारंभ में इस यात्रा का कोई संज्ञान नहीं लिया। 24 दिन की इस यात्रा में दिन प्रतिदिन बढ़ती भीड़ ने ब्रिटिश इंटेलिजेंस के कान खड़े किये और तब ब्रिटिश राज हरकत में आया। लेकिन यात्रा, वह भी शांतिपूर्वक चल रही थी, तो कोई कानूनी कार्यवाही की भी जाती तो कैसे की जाती ? 6 अप्रैल को यह यात्रा जब दांडी पहुंची तब तक देश का माहौल बदल गया था। अवसाद जो पसरा था, वह खत्म हो गया था। ब्रिटिश संवाददाताओं के अनुसार, जैसे जैसे गांधी आगे बढ़ते गए, देश का बैरोमीटर बढ़ता गया।महात्मा गांधी के नेतृत्व में दांडी मार्च (नमक सत्याग्रह) को टाइम पत्रिका ने दुनिया को बदल देने वाले 10 महत्वपूर्ण आंदोलनों की सूची में शामिल किया है । यह मार्च नमक पर ब्रिटिश राज के एकाधिकार के खिलाफ निकाला था. अहिंसा के साथ शुरु हुआ यह मार्च ब्रिटिश राज के खिलाफ बगावत का बिगुल बजा रहा था। टाइम पत्रिका ने लिखा है कि भावुक और नैतिक मूल्यों के साथ इस मार्च ने ब्रिटिश राज के खात्मे का संकल्प किया.। टाइम पत्रिका के मुताबिक भारत पर लंबे समय तक चली ब्रिटिश हुकूमत में चाय, कपड़ा और यहां तक कि नमक जैसी चीजों पर सरकार का एकाधिकार था ।. ब्रिटिश राज के समय भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार नहीं था, बल्कि उन्हें इंग्लैंड से आने वाले नमक के लिए कई गुना ज्यादा पैसे देने होते थे.। दांड़ी मार्च के बाद आने वाले महीनों में 80,000 भारतीयों को गिरफ्तार किया गया. टाइम पत्रिका ने लिखा है कि इस सत्याग्रह की वजह से ब्रिटिश राज के खिलाफ अवज्ञा फैली । 6 मार्च को नमक बना कर गांधी जी ने ब्रिटेन साम्राज्य को चुनौती दे दी। उन्हें नमक कानून तोड़ने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया। भारत में नमक पर कर आरंभिक काल से ही लगाया जाता रहा है। परंतु मुगल सम्राटों की अपेक्षा इस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल में इसमें अत्यधिक वृद्धि कर दी गई। 1835 में इस पर ब्रटिस नमक व्यापारियों के हितों के लिए कर लगा दिया गया। जिससे भारत में नमक का आयात होने लगा और इस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारियों को बहुत फायदा हुआ। 1858 के सत्ता परिवर्तन के बाद भी कर पलगा रहा। भारतीयों द्वारा इसकी आरंभ से ही निंदा की गई। 1885 के कांग्रेस के पहले सम्मेलन में एस ए स्वामीनाथन अय्यर ने यह मुद्दा उठाया। बाद में गांधीजी ने 1930 में इसे व्यापक मुद्दा बना दिया। दांडी मार्च के बाद गांधी की गिरफ्तारी के पश्चात सरोजनी के नेतृत्व में धरसाना में नमक सत्याग्रह हुआ। राजगोपालाचारी ने मद्रास के वेदमरण्यम में उसी वर्ष नमक कानून तोड़ा। दांडी मार्च को अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियाँ मिली। मगर नमक कानून 1946 तक चलता रहा जबतक कि जवाहरलाल नेहरु अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री बन कर इसे निरस्त नहीं कर दिया।जर्मन विद्वान एम जे स्लेडन ने अपनी पुस्तक साल्ज में लिखा कि नमक कर और तानासाही में सीधा संबंध है। इसका प्रमाण इतिहास देता है कि सर्वाधिक निरंकुश सभ्यताएं वे हैं जिन्होंने कि नमक और उसके व्यापार पर कर लगाया है। नमक कर सबसे पहले चीन में लगाया गया। 300 इ. पु. में लिखी गई पुस्तक ग्वांजी में नमक कर लगाने की अनुशंशा की गई थी। ग्वांजी की अनुसंशाएं जल्दी ही चीनी सरकारों की नमक नीति बन गई। एक समय नमक कर चीन की राजस्व का आधा था और उसने चीन की दीवार के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।चंद्रगुप्त में नमक का चौथाइ हिस्सा कर के रूप में लिया जाता था। मुगलों के समय हिंदुओं से 5% और मुसलमानों से 2.5% नमक कर लिया जाता था। 1759 में ब्रिटिशों ने जमीन की लगान दुगनी कर दी और नमक के परिवहन पर भी कर लगा दिया। 1767 को तंबाकू और नारियल के बाद 7 अक्टूबर 1768 को नमक पर भी कंपनी के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया। 1772 में वारेन हेस्टिंग्स ने नमक कर को फिर से कंपनी के अंतर्गत कर दिया। उसने इसके लिए एजेंट बनाए। कंपनी सर्वाधिक बोली लगाने वालों को पट्टों पर जमीन देती थई। इसने मजदूरों के शोषण को जन्म दिया। 1788 में नमक थोक विक्रेताओं को निलामी लगाकर दी जाने लगी। इसने नमक के दाम को एक रुप्ए से बढ़ाकर 4 रूप्ए कर दिया। यह अत्यधिक दर्दनाक स्थिति थि जिसमें केवल कुछ लोग ही नमक के साथ भोजन करने में समर्थथ थे। 19वीं सदी के आरंभ में नमक कर को अधिक लाभदायक बनाने के लिए और उसकी तस्करी को रोकने के लिए इस्ट इंडिया कंपनी ने जाँच केंद्र बनाए। जी एच स्मिथ ने एक सीमा खिंची जिसके पार नमक के परिवहन पर अधिक कर देना पड़ता था। 1869 तक यह सीमा पूरे भारत में फैल गई। 2300 मील तक सिंधु से मद्रास तक फैले क्षेत्र में लगभग 12 हजार लोग तैनात किए गए थे। यह कांटेदार झाड़ियों पत्थरों, पहाड़ों से बनी सीमा थी जिसके पार बिना जाँच के नहीं जाया जा सकता था। 1923 में लॉर्ड रीडिंग के समय नमक कर को दुगुना करने का विधेयक पास किया गया। 1927 में पुनः विधेयक लाया गया जिसपर वीटो लग गया। 1835 के नमक कर आयोग ने अनुसंशा की कि नमक के आयात को प्रोत्साहित करने के लिए नमक पर कर लगाया जाना चाहिए। बाद में नमक के उत्पादन को अपराध बनाया गया। 1882 में बने भारतीय नमक कानून ने सरकार को पुनः एकाधिकार स्थापित करा दिया।ब्रिटिश राज के समय भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार नहीं था, बल्कि उन्हें इंग्लैंड से आने वाले नमक के लिए कई गुना ज्यादा पैसे देने होते थे। दांडी मार्च के बाद आने वाले महीनों में 80,000 भारतीयों को गिरफ्तार किया गया। इससे एक चिंगारी भड़की जो आगे चलकर ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ में बदल गई।आजादी से पहले अंग्रेजी शासन में भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार नहीं था। उन्हें इंग्लैंड से आने वाला नमक का ही खाना पड़ता था। इसी के विरोध में महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को दांडी मार्च की शुरुआत की थी। ब्रिटिश हुकूमत को संदेश देने के लिए बापू ने एक चुटकी नमक उठाया और कहा, ‘इसके साथ मैं ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला रहा हूं।’ बापू का वह नमक आंदोलन क्रांतिकारी साबित हुआ। उसने जाति, राज्य, भाषा की दीवारें तोड़ते हुए पूरे देश में आजादी की लहर पैदा कर दी थी। इतिहास की सबसे बड़ी जनक्रांतियों में से एक, नमक आंदोलन में बड़ी तादाद में महिलाओं ने भी हिस्सा लिया था। आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाने वाली कमलादेवी और उनकी साथी महिलाओं ने नमक बनाया और उनके बनाए नमक का पहला पैकेट 501 रुपये में बिका था।उस दौर में किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि अमेरिका, चीन, ब्रिटेन समेत दुनिया के बड़े मुल्क भारत से नमक आयात करेंगे। आज गुजरात के कच्छ इलाके से पूरी दुनिया को नमक की सप्लाई हो रही है। कच्छ के अलावा गुजरात के 14 जिलों में नमक बनाया जाता है। वहीं देश से निर्यात होने वाले नमक का 90 फीसदी निर्यात कांडला पोर्ट से होता है। दुनिया में 2020-21 में लगभग 29 करोड़ मीट्रिक टन नमक का उत्पादन हुआ। स्टैटिस्टा के अनुसार चीन और अमेरिका सबसे बड़े नमक उत्पादक हैं। 2021 में चीन में 6.4 करोड़ टन और अमेरिका में 4 करोड़ टन नमक का उत्पादन हुआ। तीसरे स्थान पर भारत है जहां 2.9 करोड़ मीट्रिक टन नमक का उत्पादन किया गया। संसद में एक प्रश्न के जवाब में सरकार ने बताया कि देश में बनने वाले कुल नमक का लगभग 85 फीसदी हिस्सा गुजरात से आता है। विश्व की 8.5-10 फीसदी तक नमक की जरूरत भारत पूरी करता है। कच्छ का नमक काफी अच्छी क्वालिटी का माना जाता है। पिछले कुछ सालों में यूरोप और अमेरिका में भारत के नमक की मांग काफी बढ़ गई है। इंडियन साॅल्ट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ISMA) के अध्यक्ष बीसी रावल बताते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते अमेरिका और यूरोप के देशों में बर्फबारी ज्यादा होने लगी है। पहले जहां छह से 12 इंच तक बर्फबारी होती थी वहां अब कई फुट बर्फबारी देखी जा रही है। बर्फबारी के चलते सड़कें फिसलन भरी हो जाती हैं। इस दौरान यातायात बाधित ना हो और दुर्घटनाएं ना हों, इसके लिए जल्द से जल्द बर्फ को पिघलाना जरूरी होता है। बर्फ पिघलाने के लिए गुजरात के कच्छ से अमेरिका और यूरोप को भारी मात्रा में नमक भेजा जा रहा है। यही कारण है कि भारत का नमक निर्यात हर साल 10 फीसदी से ज्यादा बढ़ रहा है। कच्छ के दो रण हैं। एक को लोग कच्छ के छोटे रण के नाम से जानते हैं और दूसरे को बड़े रण के तौर पर जाना जाता है। कच्छ स्मॉल स्केल सॉल्ट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बच्चु भाई बताते हैं कि छोटे रण में एक खास नमक बनाया जाता है जिसे स्थानीय लोग बड़ागरा नमक के तौर पर जानते हैं। यह बड़े ढेले की तरह होता है। इस नमक की खासियत है कि यह काफी सख्त होता है और जल्दी गलता नहीं है। इसलिए पश्चिमी देशों में बर्फबारी के दौरान सड़कों और बिल्डिंगों से बर्फ हटाने के लिए इस नमक की मांग सबसे ज्यादा रहती है। सड़कों से बर्फ हटाने के लिए सोडियम क्लोराइड या अन्य केमिकल का उपयोग किया जाता है। नमक इस काम में बेहद कारगर साबित होता है। ISMA के अनुसार अमेरिका डीआइसिंग, यानी बर्फ गलाने के लिए पहले खराब क्वॉलिटी के नमक का इस्तेमाल करता था, लेकिन अब वह अच्छा नमक इस्तेमाल करने लगा है। कई बार तो वैक्यूम इवेपोरेटेड नमक का भी इस्तेमाल होता है जो उच्च क्वालिटी का होता है। गुजरात में कई कंपनियां यह नमक बना रही हैं। सामान्य तौर पर सितंबर से यूरोप और अमेरिका में भारतीय नमक की मांग बढ़ जाती है। सर्दियां आने के पहले नमक के निर्यात में काफी तेजी देखी जाती है।गुजरात में बनने वाला नमक चीन के रास्ते यूरोप, अमेरिका और रूस पहुंचता है। रावल बताते हैं कि चीन अपने देश की खराब क्वालिटी वाला ज्यादातर नमक यूरोपीय देशों को निर्यात कर देता है और भारत से अच्छी गुणवत्ता वाला नमक आयात करता है। कच्छ से बड़ी मात्रा में नमक चीन को भेजा जाता है। भारत की तुलना में अमेरिका और यूरोप में नमक की खपत काफी ज्यादा है। भारत में एक साल में प्रति व्यक्ति नमक की औसत खपत लगभग 6 किलो है, लेकिन अमेरिका और यूरोप में यह 30 से 35 किलो तक है। वहां लोग टेबल सॉल्ट के रूप में इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। ये वैक्यूम रिफाइंड नमक अच्छी क्वालिटी का होता है। नमक कारोबारी राजू ध्रुवे कहते हैं कि कुछ समय पहले तक दुनिया में ऑस्ट्रेलिया के नमक को सबसे अच्छा माना जाता था, लेकिन अब भारत के नमक की क्वालिटी दुनिया के किसी भी देश के नमक को टक्कर देती है। शीशे की चमचमाती बिल्डिंग हो या महंगी गाड़ी में लगे शीशे, सभी को बनाने में नमक की जरूरत पड़ती है। पिछले कुछ सालों में दुनिया भर में ऑटोमोबाइल और रियल एस्टेट में शीशे की मांग बढ़ने से भी नमक की मांग में भी काफी तेजी देखी गई है। दरअसल शीशा बनाने में कच्चे माल के तौर पर सोडा ऐश का इस्तेमाल होता है, जो नमक से ही बनता है। आने वाले दिनों में नमक की मांग और तेजी से बढ़ने की संभावना है। दांडी मार्च जो गांधीजी और उनके स्वयं सेवकों द्वारा 12 मार्च, 1930 ई. को शुरू किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य था अंग्रेजों के ‘नमक कानून को तोड़ना’। गांधीजी ने साबरमती में अपने आश्रम से समुद्र की ओर चलना शुरू किया। आंदोलन की शुरुआत में 78 सत्याग्रहियों के साथ दांडी कूच के लिए निकले बापू के साथ दांडी पहुंचते-पहुंचते पूरा आवाम जुट गया था।लगभग 25 दिन बाद 6 अप्रैल, 1930 ई. को दांडी पहुंचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक कानून तोड़ा। महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा के दौरान सूरत, डिंडौरी, वांज, धमन के बाद नवसारी को यात्रा के आखिरी दिनों में अपना पड़ाव बनाया था। यहां से कराडी और दांडी की यात्रा पूरी की थी। नवसारी से दांडी का फासला लभभग 13 मील का है।यह वह दौर था जब ब्रितानिया हुकूमत का चाय, कपड़ा और यहां तक कि नमक जैसी चीजों पर सरकार का एकाधिकार था। ब्रिटिश राज के समय भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार नहीं था, बल्कि उन्हें इंग्लैंड से आने वाले नमक के लिए कई गुना ज्यादा पैसे देने होते थे। दांडी मार्च के बाद आने वाले महीनों में 80,000 भारतीयों को गिरफ्तार किया गया। इससे एक चिंगारी भड़की जो आगे चलकर ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ में बदल गई। डांडी यात्रा में उत्तराखंड से तीन सत्याग्रही अल्मोड़े के ज्योतिराम काण्डपाल, भैरव दत्त जोशी और देहरादून के खडग बहादुर सिंह शामिल हुये. 6 अप्रैल को महात्मा गांधी ने एक मुठ्ठी नमक बनाकर सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की.देहरादून में सत्याग्रह कमेटी ने खाराखेत (बिंदाल किनारे)  में नमक सत्याग्रह किया. खराखेत में नमक बनाकर फालतू लाईन में सत्याग्रहियों के परिचय के साथ नमक बेचा जाता था. 20 अप्रैल तक स्वयं सेवकों की संख्या 150 से ज्यादा हो गयी थी. अल्मोड़ा में साल्ट रामगंगा के किनारे भगीरथ पांडे ने नमक कानून तोड़ा. इस बीच नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस की गिरफ्तारी के बाद नैनीताल में विराट जनसभा शुरू हुई और झंडा सत्याग्रह शुरू हुआ.गोविन्द वल्लभ पन्त, भगीरथ पांडे, इंद्र सिंह नयाल, देवकीनंदन पांडे, हर्षदेव ओली और परसी साह जैसे कार्यकर्ताओं ने नैनीताल में तल्लीताल डॉठ पर झंडा सत्याग्रह शुरू किया. कृष्णापुर, तल्लीताल में जयदेव सूरी के मकान में जिले या जिले बाहर से आये कार्यकर्ता ठहरते थे. माल रोड पर सरकार ने एक साथ पांच से ज्यादा लोगों के जाने पर रोक लगा दी.1 मई 1930 को तय हुआ कि अगली सुबह 6 बजे से गोविन्द वल्लभ पन्त सत्याग्रहियों का एक जत्था लेकर गिरफ्तार होंगे. अगले दिन डॉठ पर ही सत्याग्रहियों को रोक दिया गया. प्रशासन सत्याग्रहियों को माल रोड पर जाना नहीं देना चाहता था और सत्याग्रही झंडा लेकर सिर्फ मालरोड से होकर मल्लीताल जाना चाहते थे. पूरी रात सत्याग्रही डंटे अगले दिन 3 मई को उन्हें लारी से लालकुंआ के जंगल छोड़ दिया गया. मोटर वालों की सहायता से नवयुवकों ने सत्याग्रहियों को वापस ज्योलीकोट पहुंचाया जहाँ से वे फिर डॉठ पर आ गये. सरोजनी नायडू की गिरफ्तारी पर नैनीताल में फिर हड़ताल हुई. 25 मई को नैनीताल में नमक बनाने की घोषणा हुई लेकिन पुलिस ने गोविन्द् वल्लभ पन्त को सत्याग्रह शिविर से ही गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद पूरे नगर में हड़ताल हो गई. पन्त के बाद इंद्र सिंह नयाल ने नेतृत्व संभाला. उनकी गिरफ्तारी के बाद भी नमक बनाने और बेचने का काम निरंतर चलता रहा. कुंतीदेवी और भागुली देवी ने नैनीताल में नमक सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आंदोलन को इतिहास की सबसे बड़ी जनक्रांतियों में से एक माना जाता है। इस क्रांति ने आम भारतीयों को एकजुट कर अंग्रेजों के विरुद्ध खड़ा कर दिया था।इस ऐतिहासिक घटना को सदैव याद रखने के लिए ही, सरकार ने दांडी में गाँधी जी और उनके 78 स्वयंसेवकों की प्रतिमा बनवाई हैं। इसके अलावा, इस दौरान हुई कई घटनाओं को भित्ती-चित्र के माध्यम से भी दर्शाया गया है।

लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।