ड्रामेबाज़ी से परेशान देवभूमि अब भाजपा का किला और कांग्रेस की ज़मीन दोनों छीन लेगी – भावना पांडे
तीसरा विकल्प संयोजक भावना पांडे की हालत पर है पैनी नज़र
आखिर वही हो रहा है जिसकी परम्परा भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने उत्तराखंड में डाली थी। अस्थिरता और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर चिपके रहने की लालसा से एक बार फिर देवभूमि को शर्मसार होना पड़ सकता है हांलाकि ये ड्रामा गैरसैण से देहरादून होता हुआ दिल्ली तक पहुँच चुका है जिसपर अब फैसला होना बाकी है। प्रदेश में बड़े सियासी उलटफेर की चर्चाओं के बीच मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सोमवार सुबह अचानक दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे।
खबर लिखे जाने तक उनकी देहरादून वापसी भी हो रही है। अब वो क्या लेकर लौट रहे हैं ये पता तो उनके जुबां से निकले शब्द बताएंगे लेकिन उनके दिल्ली जाने के बाद से ही देहरादून में अटकलों का बाजार गरमा उठा। था दरअसल, मुख्यमंत्री को ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के एक कार्यक्रम में भाग लेना था और सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन इंप्लायमेंट इंटर्नशिप एंड इनोवेशन का उद्घाटन करना था। लेकिन गैरसैंण जाने के बजाय वो आनन फानन में दिल्ली की दौड़ में निकल गए । उनके साथ विधायक व भाजपा के प्रदेश मुख्य प्रवक्ता मुन्ना सिंह व देहरादून नगर निगम के मेयर सुनील उनियाल गामा भी साथ गए थे।
तीसरा विकल्प संयोजक भावना पांडे की हालत पर है पैनी नज़र
राज्य आंदोलनकारी और राजनैतिक विकल्प के तौर पर एक नया दल बनाने वाली भावना पांडे की नज़र भी इन बदलते राजनैतिक हालात पर लगी हुई है। बीते कई महीनों से तीसरा विकल्प के बैनर तले आंदोलनकारी भावना पांडे मौजूदा त्रिवन्द्र सरकार के लचर कार्यप्रणाली , बेलगाम अफसरशाही और अंदरूनी विद्रोह की तपिश में असंतुष्ट होते भाजपा विधायकों की नाराज़गी की बात अपने तमाम वीडियो बयानों में ज़ाहिर करती रही है। लेकिन इन सबके बीच अब भावना पांडे ने साफ़ कर दिया है कि पहले कांग्रेस और अब भाजपा ने मौकापरस्ती , निजी हितों और महत्वकांक्षा की घिनौनी राजनीति से देवभूमि को बहुत नुक्सान और पहाड़ का अपमान कर दिया है। ऐसे में अब उनकी पार्टी गांव गाँव जाकर दोनों दलों की असलियत जनता को बखूबी समझाएगी और इस राजनैतिक दलदल से देवभूमि को उबारेगी
उत्तराखंड भाजपा में पिछले तीन दिनों से मची सियासी हलचल से सरकार के मंत्री, विधायकों से लेकर पार्टी संगठन के पदाधिकारी सभी भौचक हैं। फिलवक्त वे कुछ भी कहने से गुरेज कर रहे हैं, मगर दबी जुबां में यह स्वीकार रहे हैं कि कहीं न कहीं कुछ बात जो जरूर है। वर्ना पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व द्वारा पर्यवेक्षक भेजकर कोर कमेटी की बैठक नहीं बुलाई जाती। अब मुख्यमंत्री के दिल्ली में पार्टी के केंद्रीय नेताओं से मुलाकात ने संशय के बादल और गहरा दिए हैं।
तो क्या अब TSR का खेल बचा है कुछ घंटों का
त्रिवेंद्र सरकार 18 मार्च को चार साल पूरे करने जा रही है, मगर उससे ऐन पहले गैरसैंण से आनन-फानन जिस तरह मंत्री, विधायकों को देहरादून भेजा गया, उससे सियासी गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं भी शुरू होने लगीं । कोई इसे नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों से जोड़कर देख रहा था तो कोई सरकार में रिक्त चल रहे तीन मंत्री पदों को भरने की कसरत से। हालांकि, तब पार्टी के प्रांतीय नेतृत्व ने इन अटकलों पर विराम लगाते हुए साफ किया कि ऐसा कुछ नहीं है।
केंद्रीय पर्यवेक्षक ने सरकार के चार साल पूरे होने के अवसर पर होने वाले कार्यक्रमों को लेकर चर्चा की। हालांकि, अगले दिन भी चर्चाएं चलती रहीं, मगर मुख्यमंत्री ने गैरसैंण में पार्टी जिलाध्यक्षों की बैठक लेकर 18 मार्च के कार्यक्रमों को लेकर चर्चा की। मुख्यमंत्री को सोमवार को भी गैरसैंण में आयोजित कार्यक्रम में भाग लेना था, मगर वह दिल्ली रवाना हो गए।हांलाकि देर रात जब मुख्यमंत्री के संदेशवाहक बन कर मीडिया से वरिष्ठ विधायक मुन्ना सिंह चौहान रूबरू हुए तो उनकी जुबाज़ कुछ और कह रही थी और उनके अंदाज़ कुछ और … वहीँ प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार समाज में इस आशंका को सही जाता रहे हैं कि सीएम त्रिवेंद्र की विदाई लगभग तय हो चुकी है।