एशिया की सबसे खूबसूरत घाटीः सोमेश्वर

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एशिया की सबसे खूबसूरत घाटीः सोमेश्वर

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड

सोमेश्वर घाटी कोसी और सांई नदी के तट पर बसी है। कोसी को कौशल्या और सांई नदी को शालिवाहिनी भी कहा जाता है। शालि नाम घान का भी है। और यह क्षेत्र धान की उपज के मशहूर है। यहां दर्जनों किस्म की घान की भरपूर पैदावार होती है। सोमेश्वर घाटीहुड़िकिया बोलगायन के लिए विख्यात है। लम्बेचौड़े खेतों में एक ही परिवार के सदस्यों से रूपाई न हो पाने की दिक्कत से उभरने के लिए सामुहिक रूपाई का रिवाज यहां अभी भी प्रचलित है। उस समय ‘हुड़िकिया बोल’ की लय-ताल में लोकगीत गाते हुए रूपाई करते ग्रामीणों का उत्साह और आनंद अदभुत होता है। यह हमारे पहाड़ की सामुहिक उद्यमशीलता के सौंदर्य का भव्य दर्शन है।सोमेश्वर घाटी की बसावत के बारे में कहा जाता है कि कुमाऊं की राजधानी चम्पावत से 16वीं शताब्दी में अल्मोड़ा स्थानांतरित होने पर चन्द राजाओं द्वारा बलशाली बोरा लोगों को यहां बसाया गया था। इसी कारण इस क्षेत्र में प्राचीन समय में सैनिक छावनियां थी। सोमेश्वर घाटी वल्ला और पल्ला बोरारौ पट्टी में फैली होने के कारण इसे ‘बोरारौ घाटी’ भी कहा जाता है। ‘रौ’ का अर्थ ‘तालाब’ और ‘जागीर’ दोनों होता है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में यह घाटी तालाबों से समृद्ध थी। दूसरे अर्थ में बोरा लोगों के आधिपत्य के कारण उनकी जागीर वाले क्षेत्र को बोरारौ कहा गया। सोमेश्वर बोरारो घाटी में धान की पौध तैयार कर काश्तकार महिलाएं रात दिन मेहनत कर खेतों मे धधकती गर्मी मे धान की पौध निकाल रोपण कर रही है। बोरारो घाटी धान फसल के मसहूर घाटी है। काश्तकारों द्वारा खेत में पानी भरकर बैलों द्वारा खेत को बराबर कर उसकी घास को निकाल कर लोहे व लकड़ी के दनाली से खेत को समतल भूमि बनाकर तैयार कर कार्य करते हैं। महिलाये धान की पौध निकालकर मंगल गीत गाकर धान के पौधों को रौपण करती है। बोरारो घाटी धान की फसल की मशहूर घाटी है। धान की फसल काफी अच्छी होती, रोपाई के बाद कुछ महीनों लहलहाते खेत सौन्दर्य से खिल खिलाते नजर आते लेकिन आज वर्तमान समय में काश्तकार कड़ी कमर तोड मेहनत करने के बाद जंगली सुअर बन्दरो के खौफ से परेशान हैं।इतनी कड़ी मेहनत करने के बाद जंगली सुअर फसलों को बर्बाद कर देते हैं। काश्तकार दिन-रात मेहनत करता है। काश्तकारों का कहना प्रत्येक ग्राम सभाओं में मनरेगा योजना के तहत इनके देख  के लिये चौकीदार रक्खे जाय जिससे काश्तकारों को निजात मिल सकती है। बोरारो घाटी में पूर्व में हजारों कुंटल धान पैदावार होती थी जो आज जंगली जानवरों के खौफ से अधिकांश उपजाऊ भूमि बंजर होने के कगार पर है। पहले खेती बैलों से जोत कर की जाती थी जो आज ट्रैक्टरों से जुताई की जा रही है। सरकार से काश्तकारो ने जंगली जानवरों के नुकसान बचाव के समस्त बोरारौ धाटी के गांवों में मनरेगा योजना के अंतर्गत चौकीदार रक्खे जाने की मांग की जिससे सभी क्षेत्रों की बंजर भूमि लहराती नजर पुनः आयेगी। कवियों व लेखकों ने इस घाटी के सौन्दर्य का वर्णन मुक्तहस्त से किया है। धर्मवीर भारती ने अपने यात्रा वृतान्त ‘ठेेले पर हिमालय‘ में एक जगह लिखा है, ‘‘वाह कितनी सुन्दर है सोमेश्वर घाटी ? इस के सौन्दर्य से मन ठगा सा रह जाता है।’’ कविवर सुमित्रानंदन पंत, बाबा नागार्जुन आदि ने भी अपने लेखों, यात्रा वृतान्तों व संस्मरणों में कौसानी के साथ-साथ सोमेश्वर व कत्यूर घाटी का वर्णन कियाहै।निर्माण शैली व कुछ अस्पष्ट तथ्यों के आधार पर माना जाता है कि 11 वीं शताब्दी में कत्यूरी राजाओं ने सोमेश्वर मंदिर की स्थापना की। 15वीं शताब्दी मंे राजा सोमदत्त चंद ने इसका पुनर्निर्माण करवाया, जो आज भी उसी तरह खड़ा है। मंदिर में हिमाचल शैली व दक्षिण भारत की शैली का मिश्रण है। दक्षिण भारत में स्थित सोमेश्वर मंदिर की अनुकृति को यहाँ पर साक्षात उतारने की कोशिश की है। स्पष्ट है कि दक्षिण भारत से ही कारीगर भी यहाँ बुलाए गए होंगे। बाद में जितने राजाओं ने इसका पुनर्निर्माण करवाया, उस राजवंश की शैली के दर्शन इस मंदिर में होते हंै।
मंदिर के साथ ही सोमेश्वर कस्बे का अस्तित्व सामने आया। इसप्रकार यह एक पौराणिक-ऐतिहासिक महत्व का कस्बा है। मगर इसके साथ ही कृषि व बागवानी के क्षेत्र मंे भी इस क्षेत्र का नाम अग्रणी है। जैविक होने के कारण आम बासमती से गुणवत्ता में कहीं बेहतर। 125 से 135 दिन के भीतर फसल तैयार। 6.8 मिमी कच्चा चावल पकाने पर 13.09 मिमी तक खिलता है। यानि किफायती भी। एक हेक्टेयर में 2500 से 2600 किलो पैदावार। समुद्री तल से 400 से 500 मीटर की ऊंचाई पर खेती आसान। धान की पैदावार के लिए तो इसे एशिया के चुनिन्दा सर्वश्रेष्ठ स्थानों में माना जाता है। परंतु इतनी समृद्धि होते हुए भी सोमेश्वर की यह घाटी पलायन के दंश से अछूती नहीं है।सोमेश्वर एक ऐसी घाटी है जो कृषि के क्षेत्र में आज भी मशहूर है.