गढ़वाली-कुमाउंनी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग!

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गढ़वालीकुमाउंनी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग!

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड दौरे पर गुरुवार को हल्द्वानी आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मीयता के साथ कुमाऊं से खुद को जोड़ा। कुमाऊं किस तरह राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान रखता है इसका उल्लेख देश की आजादी के आंदोलन को याद करते हुए किया। बोले, देश की आजादी में कुमाऊं ने बहुत बड़ा योगदान रहा। पंडित बद्री दत्त पांडे के नेतृत्व में उत्तरायणी मेले में कुली बेगार प्रथा का अंत हुआ था। हिन्दी भाषा के जनक भारतेंदु हरिश्चन्द्र से पूर्व ही इन भाषाओं का आविर्भाव हो चुका था। गढ़वाली भाषा पवार शासन काल में और कुमाउनी चंद राजाओं के शासन काल में राजभाषा रहीं। प्राइमरी कक्षाओं से लेकर स्नातकोत्तर कक्षाओं के पाठ्यक्रम के साथ आकाशवाणी और दूरदर्शन में भी यह भाषाएं स्थान पा रही हैं। उत्तराखंड से कैबिनेट मंत्री तथा केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट संसद में गढ़वाली- कुमाउनी को राजभाषा को दर्जा देते हुए संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान देने हेतु प्रस्ताव-विधेयक प्रस्तुत कर चुके हैं। इसलिए प्रधानमंत्री जी से अनुरोध है कि वह अपने हल्द्वानी आगमन पर भी कुमाउनी व गढ़वाली में अपना संबोधन शुरू करते हुए कुमाउनी व गढ़वाली को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान देने की साहित्यकारों की लंबे समय से चली आ रही मांग को संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है। लेकिन, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लाखों लोगों की ओर से बोली जाने वाली गढ़वाली और कुमाउनी को अभी तक आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है। उत्तराखंड की संस्कृति को बचाने के लिए धामी सरकार ने अच्छी पहल की है। नई शिक्षा नीति के तहत अब उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में कक्षा एक से पांच तक उत्तराखंड की लोक भाषा गढ़वाली-कुमाऊंनी और जौनसारी जैसी कई भाषाओं में पढ़ाई होगी। लोक भाषाओं में पढ़ाई होने से अब इनका महत्व बढ़ेगा। गांव से मैदान में रह रहे बच्चे भी अब अपनी मातृ भाषा को पढ़ और समझ सकेंगे।नई शिक्षा नीति के तहत प्रदेश के सरकारी स्कूलों में अब कक्षा एक से पांच तक गढ़वाली, कुमांऊनी, जौनसारी, बांग्ला व गुरमुखी की पढ़ाई कराई जाएगी। आपको बता दें कि पौड़ी में पहले ही सरकारी स्कूलों में गढ़वाली भाषा पढ़ाई जा रही है। अब कैबिनेट मीटिंग में लोक भाषा को स्कूली पाठ्यक्रम में जोड़ने के  प्रस्ताव पर स्वीकृति की मुहर लग गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज कुमाऊं की जीत का प्लान लेकर हल्द्वानी पहुंचे. पीएम मोदी ने अपने संबोधन की शुरुआत कुमाऊंनी में की और कुमाऊंनी में ही जनता को शुभकामनाओं से अपने संबोधन का समापन किया. प्रधानमंत्री का दौरा चुनावी लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है इससे पहले 4 दिसंबर को पीएम मोदी ने देहरादून में विजय संकल्प महारैली को संबोधित किया था। हल्द्वानी में आयोजित कार्यक्रम में पीएम ने एक बार फिर उत्तराखंड के लोगों का दिल जीतने की कोशिश की। देहरादून में जहां पीएम ने गढ़वाली बोली में भाषण शुरू किया था, वहीं हल्द्वानी में पीएम ने कुमाऊंनी में लोगों का अभिवादन किया। इतना ही नहीं भाषण के अंत में भी पीएम ने कुमाऊंनी बोली में जनसभा में मौजूद लोगों को नए साल और मकर संक्राति पर मनाए जाने वाले घुघुति पर्व की बधाई दी। उत्तराखंड के लाखों लोगों द्वारा बोली व लिखी जाने वाली इन भाषाओं को अभी तक राष्ट्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। वह भी तब जबकि मध्य हिमालय के इस क्षेत्र में प्राचीन काल से ये भाषाएं बोली जा रही हैं। उन्होंने कहा कि 13वीं शताब्दी से पहले जब हिदी भाषा का अस्तित्व नहीं था, तब भी सहारनपुर से हिमाचल तक फैले गढ़वाल राज्य का राजकाज गढ़वाली भाषा में किया जाता था।  कुमाउनी गढ़वाली में अपना संबोधन करते हुए गढ़वालीकुमाउनी को संविधान की आठवी अनुसूची में स्थान देने की साहित्यकारों की लंबे समय से चली रही मांग को स्वीकृत करने की घोषणा करने की करें।अभी तक आठवीं अनुसूची में आठवीं अनुसूची में स्थान मांग को पहल नहीं कर सकें!