हरीश रावत दिल्ली से हारकर आये हैं, जीतकर नहीं 

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हरीश रावत दिल्ली से हारकर आये हैं, जीतकर नहीं

मुख्यमंत्री और कांग्रेस के उत्तराखंड के वरिष्ठतम नेता हरीश रावत को जो उनकी जीत का तमगा उनके समर्थक दे रहे हैं, उनको शायद अंदर की खबर पता नहीं है। अपने चेहरे को सामने लाकर चुनाव रण में जाने के सेनापति बनकर हाइकमान पर दबाव बनाने वाले हरीश को उनकी सेना रणबांकुरा और युद्ध जीत कर आने वाला मानकर भले ही उनकी जीत के नारे लगा रही है पर मामला अंदर का कुछ और ही है।
सूत्रों के मुताबिक हरीश रावत अंदर बंद कमरे से डांट खा कर ही निकले हैं। अंदर हुई मीटिंग में उनसे साफ कहा गया कि आप चुनाव प्रचार समिति के मुखिया हैं, साफ है कि चुनाव आप लड़वाएँगे, इसमें चेहरे की बात है कहाँ? हाइकमान ने यहां तक कहा की आपको 2017 में सीधे चेहरा घोषित किया था, आप क्या दे पाए पार्टी को, सिर्फ 10 विधायक और खुद 2 सीट्स से हार गए। जाइये चुनाव लड़वाईये, जीतिए, फिर मुख्यमंत्री का चुनाव विधानमंडल में हो ही जायेगा।
इसके बाद खिसियाकर लौटे रावत ने अपने करीबी प्रदेश अध्यक्ष से मीडिया के सामने गोलमोल बयान अपने पक्ष में दिलवाया। गोदियाल ने बात साफ और सही कही कि हाईकमान ने कहा है कि हरीश रावत ही चुनाव लड़वाएँगे, वो कंपेनिंग कमेटी के मुखिया हैं यानी चुनाव का नेतृत्व रावत करेंगे। अब रावत अपना ताम झाम ले कर ये दिख रहे हैं कि उनको चेहरा घोषित कर दिया गया है।
अगर हरीश रावत दिल्ली से अपनी बात मनवा के लौटे तो उनके वो विरोधी कहाँ गए जिनको वे समुद्र में तैरते समय टांग खींचने वाला कह रहे थे। तो क्या हरीश रावत उनको दिल्ली में किनारे धर के आये।सबको को पता है कि हरीश रावत दबाव की राजनीति में किस पर निशाना साथ रहे थे। पहला निशाना प्रीतम सिंह, दूसरा प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव। तो क्या रावत दोनों को हाइकमान के सामने हरा पाए या फिर अपने रास्ते से हटा पाए?
अब एक अंदर की खबर और। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री  किशोर उपाध्याय भी दिल्ली में थे। किशोर को सोनिया गांधी ने रोक लिया बाकी सभी नेताओं को घर से विदा कर दिया। किशोर को रात्रि भोजन साथ में सोनिया और राहुल गांधी ने कराया। उसके बाद विदा किया। ये बात अलग है कि उस भोजन के वक्त क्या क्या अंदर की बात हुई। हमारे सूत्र ये ना बात सके। लेकिन यह तो साफ होता है कि किशोर उपाध्याय की भूमिका बहुत और बहुत अहम रहने वाली है।