राजनैतिक पार्टियों के घोषणा पत्रों में आपदा के दर्द का इलाज नहीं
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड आपदा के लिहाज से संवेदनशील राज्य है। नौ साल पहले आई केदारनाथ आपदा और पिछले साल की रैणी आपदा के घाव आज भी ताजा हैं। आपदा के मोर्चे पर विफलता और आपदा को लेकर संवेदनशील न होने के आरोप राजनैतिक तौर पर पार्टियां एक-दूसरे पर लगाती आ रही हैं, लेकिन बीजेपी-कांग्रेस सहित कोई भी राजनैतिक दल अपने चुनावी घोषणा पत्र में आपदा को लेकर न तो अपना विजन साफ तौर पर रख पाया और न ही किसी ने इस मुद्दे पर कोई खास संवेदनशीलता दिखाई है।प्रत्येक राजनीतिक दल अपने घोषणापत्रों में पानी और बिजली निःशुल्क देने की बात कर रहे हैं। हालांकि समाज में बाल मजदूरी, महिला उत्पीड़न, प्राकृतिक संसाधनों से चलने वाली आजीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे गंभीर विषयों पर जो मौलिक सोच चुनाव के समय उम्मीदवारों की तरफ से जनता के बीच जानी चाहिए, वह एक दूसरे को कोसने की राजनीति के कारण गायब हो जाती है।उत्तराखंड राज्य प्राप्ति के पीछे लोगों की प्रबल इच्छा थी कि राज्य के लोगों का पलायन रुकेगा, जल, जंगल, जमीन पर उन्हें अधिकार मिलेगा और आम आदमी को रोजगार मिलेगा। लेकिन ये सब बातें अब तक राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों के मजबूत हिस्से नहीं बन पाए हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में आपदा में जिस तरह से छोटे किसानों की जमीन, घर, जंगल, रास्ते, नदियां, पहाड़ बर्बाद हो रहे हैं, उनको बचाने के प्रयास भी कंपनियों के माध्यम से हो रहे हैं। उत्तराखंड में पिछले कुछ वर्षों में आई आपदा से कोई भी सबक नहीं लिया जा रहा है।उत्तराखंड में बाढ़, भूकंप, भूस्खलन की बार-बार होने वाली घटनाओं के बाद भी बड़े निर्माण, वनों का विनाश, बांधों का निर्माण, मलबों के ढेरों का निस्तारण जान-बूझकर ऐसे स्थानों पर हो रहा है, जो भू-गर्भशास्त्रियों के अनुसार संवेदनशील क्षेत्र हैं। ग्रामीण विकास और पर्यावरण संरक्षण के बारे में राजनीतिक दलों के घोषणापत्र एक जैसे हैं। उन्होंने कभी भी पर्यावरण और विकास के बीच सृजनात्मक संबंध बनाने की बात नहीं कही है और न ही पर्यावरण को न्याय मिल पा रहा है। लेकिन इस बार राज्य विधानसभा के चुनाव में राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में एक नई बात दिखाई दे रही है। लगभग सभी राजनीतिक दल 200-300 यूनिट बिजली निःशुल्क देने की बात कर रहे हैं और इसी तर्ज पर पानी भी लोगों को उपलब्ध करवाने की घोषणा कर रहे हैं। रसोई गैस की कीमत आधी करवाने के अलावा रोजगार देने का वादा भी ये पार्टियां कर रही हैं, लेकिन दूसरी ओर देखें, तो जल, जमीन, जंगल पर लोगों को अधिकार मिले, इस पर कुछ नहीं कहा जा रहा है। कमरतोड़ महंगाई को घटाने और पर्वतीय क्षेत्रों की महिलाओं को रोजमर्रा के काम के बोझ से कैसे मुक्ति मिलेगी-इस पर घोषणापत्रों में स्पष्ट सोच का अभाव है।उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद किसी भी राजनीतिक दल ने आम जन से मिलकर यह जानने की कोशिश नहीं की है कि वे कैसा उत्तराखंड चाहते हैं? किस तरह से लोगों का जीवन एवं जीविका सुरक्षित रह सकती है? कैसे राज्य के नौकरशाह, नेता मिलकर आम आदमी के द्वार पर जाकर उनकी समस्याओं को सुनें और समाधान करें? इस पर कोई राजनीतिक संस्कृति नहीं बनाई गई है। कई जनप्रतिनिधि अपनी विधायक निधि तक इस्तेमाल और सरकार की सभी योजनाओं की मॉनिटरिंग नहीं कर पाते हैं, जिसके कारण भ्रष्टाचार की असीमित गुंजाइशें बढ़ जाती हैं। भ्रष्टाचार के चलते गुणवत्ता विहीन निर्माण के कारण देश की संपत्ति बर्बाद हो रही है। इसी तरह एपीएल और बीपीएल परिवारों का पुनर्सर्वेक्षण कराने की आवश्यकता है, जिस पर चुनाव के समय उम्मीदवारों को जनता के सामने अपनी बात रखनी चाहिए।आपदा के मोर्चे पर नाकामी और आपदा को लेकर संवेदनशील न होने के इल्जामात सियासी तौर पर पार्टियां एक.दूसरे पर लगाती आ रही हैं लेकिन दुख की बात है कि भाजपा और कांग्रेस समेत कोई भी सियासी पार्टी अपने मैनीफैस्टो में आपदा को लेकर न तो अपना नजरिया साफ तौर पर रख पाई और न ही किसी ने इस मुद्दे पर कोई खास संवेदनशीलता दिखाई है।बात कांग्रेस की ही कर लें कांग्रेस ने घोषणा पत्र में केदारनाथ आपदा का जिक्र करते हुए कहा है कि तत्कालीन सीएम असफल रहे तो उन्हें हटा हरीश रावत को सीएम बनाया और एक साल में केदार धाम को सुधारकर यात्रा सुचारू रूप से संचालितकर दी गई। वहां के व्यावसायियों और धार्मिक लोगों की रोजी-रोटी का संकट कम करने, यात्रा सुचारु करने, स्वास्थ्य और सड़क सुविधाओं को दुरुस्त करने को उन्होंने बड़ी उपलब्धि बताया है।कांग्रेस ने अपने मैनीफैस्टो पर आपदा प्रबंधन पर रोडमैप बताया है। इसमें दावा किया है कि आपदा प्रबंधन न्यूनीकरण को विशेषज्ञ समूह का गठन करेंगे। ग्राम पंचायत, स्कूल, कॉलेज, शिक्षण और प्रशिक्षण संस्थाओं के जरिए आपदा को लेकर जागरूक किया व प्रशिक्षण दिया जाएगा। आपदा पर विस्तृत नीति बनाने व जिओ मैपिंग कर आपदा प्रबंधन पॉलिसी से जोड़ा जाएगा।भारतीय जनता पार्टी ने अपने मैनीफैस्टो दृटि पत्र दावा किया है जिसमे केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण का पहला चरण पूरा होने को बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिनाया गया है। भाजपा ने इस कार्य को आपदा से उबरने की दिशा में उठाए कदम की बजाए संस्कृति के संरक्षण के तौर पर इंगित किया है। साथ ही अपने दृष्टिपत्र में लिखा है कि यह कार्य भाजपा के संकल्प का एक प्रमाण है। दृष्टि पत्र में भाजपा ने आपदा को लेकर राज्य में हर साल होने वाले भूस्खलन और इससे होने वाले नुकसान को कम करने को लेकर अपना नजरिया रखा है। इसमें भूस्खलन और आपदा की वजह से जीवन,आजीविका और संपत्ति को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए सड़क के किनारों के ढालों का स्थिरीकरण करने के उद्देश्य से मिशन हिमवंत शुरू करने का वादा किया है।खेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल ने अपने मैनीफैस्टो मे सीधे तौर पर तो आपदा का जिक्र नहीं किया है ,लेकिन जल,जंगल और जमीन को लेकर उत्तराखंड में संभावित खतरों की ओर ध्यान खींचने की कोशिश जरूरकी है। उत्तराखण्ड क्रान्ति दल ने खासतौर पर चारधाम परियोजना व जल विद्युत परियोजनाओं से संभावित खतरे को रेखांकित किया है। दल का कहना है कि हम प्रदेश से जुड़े मुद्दों को शुरू से ही उठाते आ रहे हैं।उनका वादा है कि उत्तराखंड की भौगालिक स्थितियों और उसमें उत्पन्न खतरों को लेकर पार्टी सुरंग आधारित सभी जल विद्युत परियोजनाओं की समीक्षा करने के लिए एक आयोग गठित करेगा। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही इस तरह के कार्यों के लिए आगे निर्णय लिए जाएंगे।आप पार्टी अपने नेता कर्नल (रिटायर) अजय कोठियाल द्वारा केदारनाथ आपदा में किए गए कार्यों को एक उपलब्धि के तौर पर गिनाते चली आ रही है। पार्टी बता रही है कि कर्नल कोठियाल की टीम ने किस तरह मुश्किल हालात में भी बेहतरीन काम किया यह उनके सोशल मीडिया कैंपन का भी हिस्सा है। आप पार्टी ने भी सीधे तौर विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान में उत्तराखंड को संवारने को लेकर पार्टी और कर्नल कोठियाल के विजन को ही सामने रखा है। पार्टी यह भी वादा कर रही है कि कर्नल कोठियाल ने केदारनाथ आपदा में जिस तरह काम किया उसे मॉडल बनाकर उत्तराखंड को विकसित करने के लिए कदम उठाएंगे। बहरहाल आप का घोषणा पत्र अभी जारी नहीं हुआ है।आपदा के दंश झेलते देवभूति उत्तराखण्ड को हर साल आपदा से एक अनुमान के मुताबिक आठ सौ करोड़ रुपये से लेकर एक हजार रुपये करोड़ तक का नुकसान होता है। सवाल ये उठता हे कि इस नुकसान की भरपाई कैसे होगी और आपदा में अपनी जान गंवाने वाले और घायलों की आर्थिक सहायता, उनके मुआवजे को लेकर भी किसी तरह का वादा मैनीफैस्टो में क्यों नहीं किया गया है ? इसके साथ ही आपदा के कारण विस्थापन की जद में आए गांवों को लेकर भी कोई जिक्र नहीं किया गया है।