दीवान सिंह दानू हैं देश के पहले महावीर चक्र विजेता
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के सपूतों ने हमेशा देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने के लिए बढ़चढ़कर योगदान दिया है। स्व. जनरल बिपिन रावत के बाद अब अनिल चौहान को सीडीएस बनाए जाने के बाद सूबे का मान बढ़ा है। यह मौका प्रदेश उन जवानों को भी याद करने का जिन्होंने देश की सुरक्षा की खातिर अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। ऐसे ही थे देश के पहले महावीर चक्र विजेता दीवान सिंह दानू के बलिदान के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनकी शहादत का सम्मान करते हुए उनके पिता को एक हस्तलिखित पत्र भेजा था। जिसमें उन्होंने लिखा था, हिंद की जनता की ओर से और अपनी तरफ से दुख और रंज में यह संदेश भेज रहा हूं। हमारी दिली हमदर्दी आपके साथ है। देश की सेवा में यह जो बलिदान हुआ है इसके लिए देश कृतज्ञ है। और हमारी यह प्रार्थना है कि इससे आपको कुछ धीरज और शांति मिले।दानू के सौर्य के किस्से कुमाऊं रेजीमेंट का इतिहास नामक पुस्तक में भी है। जिसमें लिखा है, दानू ने कबाइलियों से मोर्चे के दौरान अदम्य साहस का परिचय दिया। वह अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहे। उनकी जब आखिरी सांस उखड़ी तब भी उनके हाथ में गन जकड़ी हुई थी। मुनस्यारी का राजकीय हाईस्कूल बिर्थी उनके नाम से स्थापित है। कुमाऊं रेजीमेंट सेंटर रानीखेत में उनके नाम पर दीवान हाल भी है।देश के प्रथम महावीर चक्र विजेता दीवान सिंह दानू का गांव अब भी सड़क सुविधा से महरूम है। शासन-शासन प्रशासन की बेरुखी के चलते गांव के लिए महज चार किमी की सड़क नहीं बन पाई। सड़क नहीं होने से गांव के लोगों को तमाम दिक्कतों से जूझना पड़ रहा है। मंगलवार को क्षेत्र पंचायत सदस्य गिरगांव देवेंद्र सिंह ने प्रथम महावीर चक्र विजेता दीवान सिंह के गांव पुरदम में सड़क निर्माण की मांग को लेकर पीएम को पत्र भेजा। उन्होंने बताया दीवान सिंह चार मार्च 1943 को 4कुमाऊं रेजीमेंट में भर्ती हुए। 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के बाद पाकिस्तान के साथ कश्मीर में लड़ाई छिड़ गई। तीन नवंबर 1947 को बड़गाम हवाई अड्डे को कब्जे में लेने के लिए कबालियों ने उनकी प्लाटून पर हमला कर दिया। डी कंपनी के 11वीं पलाटून के सेक्शन नंबर 1 में ब्रेन गनर के रूप में तैनात दीवान ने 15 कबालियों को मौट के घाट उतार दिया। इस हमले में वो शहीद हो गए। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें मरणोपरांत आजाद भारत का प्रथम महावीर चक्र प्रदान किया। उनका कहना है कि जिस परिवार जिस गांव के बेटे ने देश रक्षा में अपने प्राण न्याछावर किए, उस गांव में आज तक मोटर मार्ग का निर्माण नहीं हो पाया। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से पुरदम तक चार किमी मोटर मार्ग बनाने के निर्देश दिए थे। लोनिवि डीडीहाट ने 40 प्रतिशत कार्य करने के बाद काम बंद कर दिया।उन्होंने कहा सरकार निर्माण कार्य कराकर शहीद को सच्ची श्रद्धांजलि दे सकती है
लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।