बांध और बिजली के लिए अपने घर में ही अस्तित्व की लड़ाई हार रही यमुना
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
ऊर्जा प्रदेश को रोशन करने के लिए उत्तराखंड का एक ओर गांव जलसमाधि ले चुका है। एक सौ बीस मेगावाट की व्यासी परियोजना के लिए विस्थापित किया गया लोहारी गांव बांध की झील में जलमग्न हो रहा है। गांव के बुजुर्ग,युवा, महिलाएं और बच्चों के सामने जब उनके घर डूब रहे थे तो डूबते गांव को देखते हुए हर किसी की आंखे भर आई। गांव वालों के सामने अब रोजगार, खेती और नया घर बसाने की बड़ी चुनौती सामने खड़ी हो गई है।देहरादून जिले के कालसी क्षेत्र में सोमवार को 120 मेगावाट क्षमता वाली लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना की झील का जलस्तर बढ़ने के साथ ही लोहारी गांव जलमग्न हो गया। इस दौरान माहौल भावुक हो गया। अपने पैतृक गांव को डूबता देख गांव वालों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। झील की गहराइयों में बांध प्रभावितों की सुनहरी यादें, संस्कृति और खेत-खलिहान गुम हो गए। ऊंचे स्थानों पर बैठे ग्रामीण दिनभर भीगी आंखों से अपने पैतृक गांव को जल समाधि लेते देखते रहे। ग्रामीणों की मांग थी कि उन्हें आखिरी बिस्सू पर्व पैतृक गांव में ही मनाने को कुछ वक्त दिया जाए, लेकिन सभी को 48 घंटे के नोटिस पर गांव खाली करना पड़ा। लोहारी गांव में यमुना नदी पर बनी इस रन आफ रिवर जल विद्युत परियोजना से सालाना 330 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन होना है। इन दिनों झील में जल स्तर बढ़ाया जा रहा है। अभी दो मीटर पानी और बढ़ाया जाना है। डूब क्षेत्र में आने के कारण ग्रामीणों को गांव खाली का नोटिस दिया गया था। जल विद्युत निगम की ओर से उन्हें सामान व उपज ढोने के लिए वाहन भी मुहैया कराए गए थे। हालांकि, गांव खाली होने के बावजूद सोमवार को विस्थापित आसपास ऊंचे स्थानों पर बैठकर अपनी सुनहरी स्मृतियों को झील में समाते देखते रहे। बांध विस्थापित का आरोप था कि शासन-प्रशासन व जल विद्युत निगम ने पुनर्वास किए बगैर ही उन्हें गांव छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। विस्थापितों ने बताया कि उन्होंने गेहूं की फसल तो काट ली थी, लेकिन टमाटर, मटर, आलू, प्याज व लहसुन के लहलहाते खेत ऐसे ही छोड़ने पड़े। पैतृक गांव को डूबता देख महिलाओं के आंसू तो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उधर, उपजिलाधिकारी ने बताया कि प्रशासन की ओर से बांध विस्थापितों के लिए रहने की व्यवस्था की गई है। लेकिन, ग्रामीण वहां जाने को तैयार ही नहीं हैं। 120 मेगावाट की लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना के लिए आवश्यक सभी स्वीकृतियां प्राप्त करने के बाद वर्ष 2014 में परियोजना पर दोबारा कार्य शुरू हुआ। दिसंबर 2021 में परियोजना का निर्माण कार्य पूर्ण कर उसकी कमिशनिंग की जानी थी, लेकिन तमाम जटिलताओं के चलते कमिशनिंग में देरी हुई। 1777.30 करोड़ की लागत वाली इस परियोजना के डूब क्षेत्र में सिर्फ लोहारी गांव ही आ रहा था। गांव के 66 विस्थापित परिवारों को चिह्नित कर शासन-प्रशासन ने उन्हें मुआवजा भी बांट दिया है। परियोजना का बांध स्थल जुड्डो व विद्युत गृह हथियारी गांव में है। लखवाड़-व्यासी परियोजना के अधिशासी निदेशक के बताया कि यमुना नदी पर बनी इस परियोजना में हिमाच्छादित क्षेत्र को मिलाकर जलग्रहण क्षेत्र 2100 वर्ग किमी और हिमाच्छादित जलग्रहण क्षेत्र 60 वर्ग किमी है। कुल डिजाइन डिस्चार्ज 120 क्यूमेक्स लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना से प्रभावित ग्राम लोहारी में जेसीबी के गरजने पर स्थानीय निवासियों ने प्रशासन की कार्रवाई का विरोध किया। लोगों का कहना है कि वे स्वंय ही अपने घरों को तोड़ रहे थे। लेकिन प्रशासन ने बिना समय दिए जेसीबी लगा मकानों को तोड़ना शुरू कर दिया। इस मुद्दे पर ग्रामीणों की मौके पर मौजूद अधिकारियों से तीखी झड़प भी हुई। 5 दिसम्बर 2021 को देहरादून में प्रधानमंत्री मोदी ने 120 मेगावाट क्षमता की व्यासी जल विद्युत परियोजना का लोकार्पण किया था। इस परियोजना से हर साल प्रतिवर्ष करीब 353 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन होगा। दून जिले के पछवादून में छिबरौ, खोदरी, ढालीपुर, ढकरानी और कुल्हाल जल विद्युत उत्पादन परियोजनाएं काम कर रही है।व्यासी परियोजना देहरादून जिले के हथियारी जुड्डो में यमुना नदी पर स्थित रन आफ रिवर जलविद्युत परियोजना है। 2014 में परियोजना का निर्माण कार्य शुरू किया गया, जिसकी इसी माह कमिशिनिंग की जा रही है। इस परियोजना की लागत 1777.30 करोड़ है।लखवाड़–व्यासी परियोजना के लिए वर्ष 1972 में सरकार और ग्रामीणों के बीच ज़मीन अधिग्रहण का समझौता हुआ था। 1977-1989 के बीच गांव की 8,495 हेक्टेअर भूमि अधिग्रहित की जा चुकी है। जबकि लखवाड़ परियोजना के लिए करीब 9 हेक्टेअर ज़मीन का अधिग्रहण किया जाना बाकी है। इनमें से एक जौनसार-भाबर की अनूठी संस्कृति और परंपरा वाला जनजातीय आबादी वाला गांव लोहारी भी है. 90 परिवार वाला ये पूरा गांव झील में समा जाएगा. लोहारी गांव की महिलाएं यमुना पर बनी झील का गांव की ओर चढ़ता पानी दिखाती हैं. धीरे-धीरे आम के पेड़ पानी में डूब रहे हैं और पशुओं की छानी झील की दूसरी तरफ चली गई है. गांव को लोग रुंधे गले से खेतों पर लगाए गए पीले निशान को देखते हुए बताते हैं कि यह 626 मीटर का स्तर दर्शाता है. यहां तक पानी चढ़ने पर उनके खेत डूब जाएंगे. 631 मीटर पर पूरा गांव डूब जाएगा. बेहद सुंदर-पर्वतीय शैली में लकड़ियों से बने मकान भी झील में समा जाएंगे, जिससे एक पूरी सभ्यता डूब जाएगी.लोहारी गांव लखवाड़ और व्यासी दोनों परियोजनाओं से प्रभावित हो रहा है. लखवाड़–व्यासी परियोजना के लिए वर्ष 1972 में सरकार और ग्रामीणों के बीच जमीन अधिग्रहण का समझौता हुआ था. 1977-1989 के बीच गांव की 8,495 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की जा चुकी है. जबकि लखवाड़ परियोजना के लिए करीब 9 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जाना बाकी है. लोहारी गांव के डूबने से टिहरी बांध के डूबते समय टिहरी जिले की पूरी तस्वीरें फिर से जहन में आ गई है। अपने स्थापना के 90 वर्ष बाद 29 अक्तूबर 2005 को उत्तराखंड में बसा खूबसूरत टिहरी शहर डूब चुकी थी, राज्यों में जल बंटवारे को लेकर अपर यमुना रिवर बोर्ड का 1994 में ही गठन हो चुका है। परियोजना से हर रोज 12.6 मिलियन घन मीटर पानी मिलेगा। जिसमें से हरियाणा को 47.82 प्रतिशत, दिल्ली 6.04 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश 3.15 प्रतिशत, राजस्थान 9.34 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश को 29.83 और उत्तराखंड को 3.81 प्रतिशत पानी मिलेगा। परियोजना से उत्पादित होने वाली बिजली पर उत्तराखंड का अधिकार होगा।