उत्तराखंड में बनेगी स्वास्थ्य नीति,तैयारी में जुटी सरकार!

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उत्तराखंड में बनेगी स्वास्थ्य नीति,तैयारी में जुटी सरकार!

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड में पहली बार स्वास्थ्य नीति को बनाने की कवायद शुरू हो गई है। इसके लिए विभाग ने नीति का मसौदा तैयार किया है। जल्द ही प्रदेश सरकार इस नई नीति को शुरू करने की हरी झंडी दिखा सकती है। आपको बतादें कि इस नई स्वास्थ्य नीति के बनने से स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे और सेवाओं में बड़ा बदलाब आएगा और कई सुधार हो पाएंगें। जिलों के प्रभारी मंत्री भी नई स्वास्थ्य नीति पर लोगों से सुझाव लेंगे। जिसके बाद सरकार स्वास्थ्य नीति पर फैसला लेकर उसे लागू करेगी। प्रदेश में लोगों को बेहतर सुविधाओं के साथ स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जायेंगीं। उत्तराखंड की स्वास्थ्य नीति-2021 तैयार कर रही है। स्वास्थ्य विभाग ने नीति का खाका तैयार किया है। जिसमें स्वास्थ्य सेवाओं को सुगम, सुलभ और गुणवत्ता युक्त बनाने पर सरकार का नीति में फोकस है। माना जा रहा है कि चुनाव की आचार संहिता लागू होने से पहले सरकार स्वास्थ्य नीति पर फैसला ले सकती है। प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में जहां सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। वहीं, चुनिंदा बड़े अस्पताल हैं।  उत्तराखंड में इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड मानकों के अनुरूप अस्पतालों को बनाया गया है। जिसके अंतर्गत 13 जिला अस्पताल, 21 उप जिला चिकित्सालय, 80 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 52 पीएचसी टाइप-बी, 526 पीएचसी टाइप-ए, 23 अन्य चिकित्सा इकाईयां, 1897 उप स्वास्थ्य केंद्र मौजूद है,और ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में हेल्थ वेलनेस सेंटर बनाए गए हैं। इसके अलावा एम्स ऋषिकेश के अलावा तीन राजकीय मेडिकल कॉलेज दून, श्रीनगर, हल्द्वानी में संचालित हैं। राजकीय मेडिकल कालेज अल्मोड़ा को शुरू किया जाना है। हरिद्वार, पिथौरागढ़ और रुद्रपुर में नए मेडिकल कालेज प्रस्तावित हैं। जिनका काम चल रहा है। सोशल डेवलपमेंट फार कम्युनिटी फाउंडेशन के अध्यक्ष का कहना है कि उत्तराखंड में जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार और विभाग को फ्रेम वर्क बनाने की जरूरत है। इसके लिए सरकार को प्राथमिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना होगा। कैग की रिपोर्ट के अनुसार 2017 से 2019 तक पिछले तीन साल में उत्तराखंड में स्वास्थ्य क्षेत्र में सबसे कम खर्च हुआ है। प्रदेश में प्रति व्यक्ति पर 5887 रुपये खर्च हो रहे हैं। इसके साथ प्रशिक्षित डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ पर ध्यान देना होगा। सरकार निजी अस्पतालों को प्रोत्साहित करे, लेकिन निजी अस्पतालों की लूट खसोट पर नकेल कसनी चाहिए। तकनीकी का इस्तेमाल कर टेलीमेडिसिन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उत्तराखंड में फर्श पर डिलिवरी, वक्त पर एंबुलेंस न मिलना, इलाज में देरी जैसे ख़बरें आम हैं और ख़राब सवास्थ्य सेवाओं को लेकर कई बार सवाल भी खड़े होते हैं. खुद मुख्यंत्री भी यह स्वीकार चुके थे। कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. लेकिन अब नीति आयोग की रिपोर्ट ने इस सच्चाई पर मुहर लगा दी था। कि उत्तराखंड में स्वास्थ्य व्यवस्था खत्म है. स्वास्थ्य नीति का निर्धारण धरातल पर विद्यमान परिस्थितियों के अनुसार किए जाने की जरूरत है। ताकि नीति का सही एवं वास्तविक स्तर पर क्रियान्वयन हो सके। अक्सर केंद्रीय स्तर पर नीति निर्धारण होता है, जिसमें जमीनी हकीकत से रूबरू होने वाले स्वास्थ्य कर्मियों के अनुभव और सुझाव शामिल नहीं हो पाते हैं। परिणाम स्वरूप नीतियों के क्रियान्वयन में व्यवहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और अपेक्षित लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हो पाती है। भारतीय रिजर्व बैंक की राज्यों के बजट पर आधारित वार्षिक रिपोर्ट और उत्तराखंड विधानसभा में प्रस्तुत बजट दस्तावेजों के विश्लेषण से पता चलता है कि उत्तराखंड में वर्ष 2001-02 से लेकर 2020-21 तक राज्य सरकार स्वास्थ्य सेवाओं पर बजट अनुमान में रुपये 22,982 करोड़ खर्च करने का वादा किया था लेकिन 2019-20 तक वास्तविक खर्चों और 2020-21 के पुनरीक्षित अनुमान तक सिर्फ रुपये 18,697 करोड़ खर्च किया, रुपये 4,285 करोड़ ऐसा है जो सरकार द्वरा खर्च ही नहीं किया गया। उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं पर जहाँ एक और ज्यादा बजटीय खर्च की जरूरत है वहीं राज्य सरकार द्वारा वास्तविक खर्चों में की जा रही यह कटौती स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर ख़ासा प्रभाव डाल रही हैं। एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल कहते हैं कि रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि जन स्वास्थ्य पर खर्च के मामले में हम पिछड़ रहे हैं। राज्य सरकार को अब जन स्वास्थ्य को पहली प्राथमिकता बनाना चाहिए। वे कहते हैं कि कोविड महामारी ने हमारे सामने जो चुनौतियां खड़ी की हैं, उसके बाद यह मसला न सिर्फ सार्वजनिक चर्चा का विषय बन गया है, बल्कि यह भी स्पष्ट हो गया है कि हमें जन स्वास्थ्य के ढांचे पर गुणात्मक तरीके से और ज्यादा खर्च करके इसे और मजबूत बनाने की जरूरत है।अब उम्मीद करते हैं कि अगले साल में स्थिति जरूर बदलेगी।