सरकारों की ओर आशा भरी नजर से टकटकी लगाए बैठी पहाड़ की जनता

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सरकारों की ओर आशा भरी नजर से टकटकी लगाए बैठी पहाड़ की जनता

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

पहाड़ों में खाली होते गांव और बंजर होते खेत ग्रामीण परिवेश की सबसे बड़ी समस्या है। पहाड़ों के इन गांवों में किसान खेत खलियान से विरक्त भी हो रहे हैं। इनके सामने सबसे बड़ी चुनौती जंगली जानवरों से फसल सुरक्षा को लेकर है। अभी तक सरकारी सिस्टम की ओर से प्रभावी रूप से फसल सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए गए हैं। सरकारी स्तर पर खाली होते गांवों के कारणों की पड़ताल भी ईमानदारी से नहीं हुई है। बस पहाड़ की जनता हर पांच साल में सरकारों की ओर आशा भरी नजर से टकटकी लगाए बैठी है। लेकिन, सत्ता में आने और जाने वाले सियासी क्षत्रपों और सरकारी मुलाजिमों को पहाड़ के इन ज्वलंत मुद्दों के समाधान की कहां फिक्र है। पहाड़ी जनपदों में खेती से किसान बड़ी संख्या में विमुख हो रहे हैं। टिहरी, पौड़ी जनपद में खाली होते गांव और बंजर खेत इसकी तस्दीक करा रहे हैं। खेती से विमुख होने का सबसे बड़ा कारण जंगली जानवरों के द्वारा फसलों को पहुंचा जा नुकसान है। जंगली सूअर, बंदर, सेही, लंगूर और भालू पहाड़ की छोटे किसानों की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं। जिसके कारण बीते वर्षों में आर्थिक रूप से सक्षम सैकड़ों परिवार पहाड़ के गांव छोड़कर शहरों की ओर बढ़े है। गांव में इस पलायन से बंजर हुए खेत और खंडहर हुए घर जंगली जानवरों का डेरा बन रहे हैं। जो गांव में निवासरत आर्थिक रूप से अक्षम ग्रामीणों के लिए संकट बन चुके हैं। इसके अलावा पहाड़ों के गांवों में अच्छी शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को घोर कमी है। संचार की बदहाल सेवा, सरकारी तंत्र की बाबू व्यवस्था से भी ग्रामीण परेशान हैं। गांव में विधवा और बुजुर्गों को समय पर पेंशन नहीं मिल पाती है। जबकि उनका गुजारा पेंशन पर ही निर्भर है। गांव के स्कूलों में 50 किलोमीटर से अधिक दूरी से सफर कर पढ़ाने को आने वाले शिक्षकों के रवैये से भी ग्रामीण परेशान हैं। लंबा सफर करने के बाद स्कूलों में ऐसे शिक्षक पूरी क्षमता के साथ नहीं पढ़ा पाते हैं। गांव बचाओ आंदोलन के सदस्य कहते हैं कि वर्तमान में गांवों निवास करने वालों में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्गों की संख्या सबसे अधिक है। अधिकांश पुरुष वर्ग रोजगार के लिए शहरी क्षेत्रों में हैं। इसलिए सरकार को महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के सोचने की जरूरत है। बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा के लिए स्कूल, गांव में महिलाओं के अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्थाएं हों। राशन समय पर मिले, पेंशन समय पर मिल जाए। विद्युत आपूर्ति सुचारू रहे ग्रामीणों की इतनी ही अपेक्षाएं हैं। गांव की महिला कार्यकत्र्ता कहती है कि सरकारी कार्यालयों में जब गांव के ग्रामीण किसी तरह पहुंचते हैं तो बाबू कई चक्कर कटवाते हैं। जिस काम ने एक दिन में होना है, उसे होने में कई दिन लग जाते हैं। ये हाल समाज कल्याण, कृषि, उद्यान, खाद्यपूर्ति, वन विभाग सहित सभी विभागों का है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में खेती को नुकसान पहुंचा रहे जंगली जानवर बड़ी समस्या बन गए हैं। लेकिन वन विभाग की ओर से कोई सुरक्षा इंतजाम नहीं किए गए हैं। उत्तराखण्ड राज्य प्राप्त आन्दोलन के दौरान क्षेत्र के विकास और उसके साथ अपनी खुशहाली का सपना संजोए, आन्दोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी करने वाले ग्रामीणों ने राज्य गठन के समय एक सुखद सपना यह भी देखा था कि उन्हें और उनके अपनों को पलायन की पीड़ा और विरह से धीरे-धीरे ही सही, परन्तु मुक्ति मिल जाएगी। परन्तु आज भी उत्तराखण्ड के ग्रामीणों के लिये जीवित रहने का एकमात्र रास्ता ‘पलायन’ ही है। हालिया घटित त्रासदी ने यह रहस्य भी उजागर कर दिया है कि उत्तराखण्ड के जल, जंगल, जमीनों से बेदखल किए गए लोगों के पलायन के लिये मजबूर किया जा रहा है।

उनके पुनर्वास पर सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही है। विगत लम्बे समय में यहाँ स्थानीय स्तर पर पनपा माफिया ठेकेदार, भू-माफिया, नौकरशाह और राजनेताओं का नापाक गठबन्धन वर्तमान में सत्ता पर काबिज हो चुका है और यही गठबन्धन वर्तमान में विगत में घटित भयंकर त्रासदी से उबरने के लिये जूझ रहे उत्तराखण्ड को सहायता के रूप में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त पूँजी की बेशर्म दलाली पर उतर आया है।
जाहिर है कि आज हमारा संघर्ष पहले के किसी भी दौर से अधिक मुश्किल दौर में पहुँच गया है। राज्य की आम जनता के बुनियादी सवालों और विकास के वैकल्पिक एजेंडे के साथ जमीन से जुझारू संघर्षों को संचालित करना आज की माँग बन गया है। हम पलायन को तभी रोक सकते हैं जबकि हम राज्य को उसके संसाधनों पर आधारित विकास के पथ पर अग्रसर करेंगे।आखिर हम कब तक खैरात में मिली सहायता से अपना राज्य संवारने की खाम ख्याली में रहेंगे और यह खैरात भी सत्ता के शीर्षस्थ सत्ता प्रतिष्ठान और उनके साथ नापाक तौर पर गठबन्धित हो चुके लोगों में ही बँट रही है। आम जनता तक इसका कोई भी लाभ नहीं पहुँच रहा है। बहरहाल राज्य की जनता ने विकास को दृष्टिगत इस बार भरोसा है।